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हमारी नादानी से नदारद न हो जाएं नदियां

इसे अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परंपरा, हमारे यहा मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहा तक कुंभ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं। आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नानकर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वे उस नदी के जीवन के बारे में कभी भी नहीं सोचते।...

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महंगाई पर कसेगी लगाम

गंगा नदी के फ्लोटिंग रेस्तरां से (पटना)। दिन के करीब सवा दो बजे थे। सूरज आज से उत्तारायण है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तार की तरफ सीढि़यां उतर रहे थे, अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ। ठंडी हवाओं के बीच पर्यटन निगम के एम.वी. गंगा विहार जलयान पर सवार हुए। गंगा की थिरकती लहरों पर फ्लोटिंग रेस्तरां में कैबिनेट की बैठक हुई। कैबिनेट की इस बैठक में 14 महत्वपूर्ण फैसले लिये गये। करीब दो...

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डुबकी लगाने लायक भी नहीं है गंगा

नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। तारने वाली गंगा के पानी के मारक होने पर बहस हो सकती है मगर एक बात तय है कि अब गंगाजल आचमन तो छोड़िए नहाने लायक भी नहीं है। भागीरथी के दामन से प्रदूषण के दाग धोने पर अरबों रुपया बहाने के बावजूद सरकार के तथ्य बताते हैं कि कि गंगोत्री से लेकर डायमंड हार्बर के बीच अधिकतर स्थानों पर गंगा जल से दूर ही रहने में भलाई है। ...

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ऐसे तो प्रदूषण मुक्त नहीं होगी गंगा

हरिद्वार। साधु-संत सामान्य तौर पर किसी बात पर एकमत कम ही होते हैं, लेकिन जब बात गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की आई तो उन्होंने सनातन परंपरा को छोड़कर गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने में अपना विशेष योगदान दिया। संत एक राय हुए कि वह जल और भू-समाधि शासन की ओर से मुहैया की गई जमीन पर करेंगे, लेकिन लंबे समय बाद भी जिन दो स्थानों पर समाधि की सहमति...

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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट

खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...

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