‘बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?' आपने यह कहावत तो सुनी होगी. झारखंड में इसे दूसरे रूप में कहा जा सकता है. ‘खनन-लॉबी के गले में शाह आयोग की घंटी कौन बांधे?' घंटी बांधने का जिम्मा जो लेगा उसकी सांस हमेशा अटकी रहेगी. पता नहीं कब कौन-सा भ्रष्टाचार सामने आ जाए और घंटी बांधने का जिम्मेदार व्यक्ति की जीवनभर की कमाई हजम हो जाए? जो ज्यादा चालाक हैं वे...
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मरती हुई झीलों को मिल रही जिंदगी--
ऐसे कई उदाहरण हैं, जब एक अकेले इनसान ने अपनी कोशिशों से अपने आसपास के सूरत-ए-हाल को बदल डाला है. आज की स्टोरी में हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के काम के बारे में बता रहे हैं, जिसने अपने अथक प्रयास से झीलों को पुनर्जीवन दे दिया. क्या हम सिर्फ अपने लिए जवाबदेह हैं, या अपने परिवार के लिए या अपने समुदाय के लिए? तो फिर धरती, पहाड़ों, नदियों...
More »पर्यावरण और विश्व राजनीति-- बिभाष
पिछले नवंबर का महीना सिर्फ विमुद्रीकरण के ही लिये नहीं जाना जायेगा. नोम चॉम्स्की ने हाल में डेली मिरर को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि दो घटनाएं जो आठ नवंबर को घटित हुई हैं, बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. एक ओर जहां, अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना नया राष्ट्रपति चुना, वहीं दूसरी घटना है- मोरक्को के मार्राकेश शहर में 7 से 16 नवंबर तक यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन...
More »एशियाई विकास बैंक ने घटाया वृद्धि दर अनुमान
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने नोटबंदी, कमजोर निवेश तथा कृषि क्षेत्र में नरमी के कारण वर्ष 2016 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.0 प्रतिशत कर दिया है। हालांकि 2017 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 7.8 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है। एडीबी की नई रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘विकासशील एशिया में आर्थिक वृद्धि व्यापक रूप से स्थिर बनी हुइ्र...
More »जो महत्तम हैं, वे लघुत्तम क्यों!-- अनिल रघुराज
हर किसी का अपना-अपना आर्थिक जीवन है. वयस्क वर्तमान हैं, तो बच्चे भविष्य की तैयारी हैं. यहां तक कि बेरोजगारों का भी आर्थिक जीवन है, क्योंकि यहां सिर्फ कमाने या बनाने ही नहीं, खपत का भी योगदान है. हम अपने पास-पड़ोस के आर्थिक जीवन से भी वाकिफ रहते हैं. लेकिन, जब सारे देश की बात होती है, तो सब कुछ धुआं-धुआं हो जाता है. उसमें भी जब जीडीपी की चर्चा...
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