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वाम के लिए सबक- अरुण माहेश्वरी

जनसत्ता 21 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा की भारी लेकिन एक प्रकार से प्रत्याशित जीत ही हुई है। चुनाव प्रचार के दौरान ही इसके सारे संकेत मिलने लगे थे। फिर भी हमारे इधर के कई मंतव्यों से यह साफ है कि हम सामने दिखाई दे रहे इस सच को संभवत: समझ या स्वीकार नहीं पा रहे थे। हालांकि हमने ही अपनी एक टिप्पणी...

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मीडिया चालित समाज में लोकतंत्र- विपुल मुद्गल

हमने चर्चित कारपोरेट पीआर बॉस नीरा राडिया, मीडिया की नामवर हस्तियों और राजनीति के दिग्गजों की टेलीफोन की बातचीत के लीक हुए टेपों में जो कुछ सुना है वह एक मीडिया-चालित(मीडिया-आइज्ड) राजनीति की सटीक तस्वीर पेश करता है। इस प्रकरण से पता चलता है कि किस तरह से पेशेवर संवादकर्मी (प्रोफेशनल कम्युनिकेटर्स) महत्वपूर्ण नीतियों के मामलों में जनता की समझ को गढते या परिचालित करते हैं। निसंदेह...

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75000 करोड़ काला धन चुनावों में खर्च

नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के छठे चरण के करीब पहुंचने के बीच एक नयी अध्ययन रिपोर्ट जारी की गयी है. इसमें कहा गया है कि पिछले पांच सालों में देश में हुए विभिन्न चुनावों में डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक धन खर्च किया गया. इसमें से आधे से अधिक धन (75,000 करोड़ रुपये से ज्यादा) ‘बेहिसाब स्नेतों’ से आया था. सेंटर फॉर मीडिया (सीएमएस) द्वारा कराया गया यह...

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औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन

लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट...

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मोदी के गुजरात मॉडल का 'गड़बड़झाला'- ज्यां द्रेज

राजनीतिक गहमागहमी में देश जब मतदान-केंद्रों की तरफ बढ़ चला है तो ठोस तथ्यों और तर्कों से होने वाले जांच-परख की एक तरह से विदाई हो रही है. और इन पर हावी हो रहा है जन-संपर्क उद्योग का प्रचार-अभियान. पहला है नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर चढाया जा रहा रंग-रोगन ताकि वो लोगों की नजर में चढ़ जाए. अधिनायकवादी चरित्र और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिक्रियावादी मूल्यों में अंदर तक धंसे...

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