अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...
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किसान के अस्तित्व की लड़ाई- योगेन्द्र यादव
टेलीविजन चैनलों ने किसान को याद किया, ताकि पूरा देश किसान को भूल सके! यही किसान और खेती की त्रासदी है. क्या किसान आंदोलन इस त्रासदी को पलट सकेंगे? असली त्रासदी यह नहीं कि गजेंद्र नाम का एक और किसान अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसके मां-बाप ने अपने बुढ़ापे का सहारा खो दिया और बच्चों ने अपना पिता. असली त्रासदी है कि किसानों की आत्महत्या का यही सिलसिला...
More »कारपोरेट खेती से किसका भला होगा- सुभाषचंद्र कुशवाहा
मानो फसलों की बर्बादी और किसानों की आत्महत्या ही काफी न हो, अब एसोचैम ने शोध प्रस्तुत किया है कि कॉरपोरेट और ग्रुप फार्मिंग ही छोटे किसानों को आपदाओं से बचाएगी। एसोचैम किसानों को राहत देने के पक्ष में नहीं है। उसकी मंशा कंपनियों को राहत देने की है। उसके मुताबिक, किसानों की जमीन औने-पौने दामों में कॉरपोरेट को सौंप देनी चाहिए। उसका मानना है कि कृषि ऋण लगातार बढ़ाने...
More »बात निकली है तो दूर तलक जाएगी - भवदीप कांग
गजेंद्र सिंह की मौत का राजनीतिकरण इस पूरे प्रकरण का सबसे दु:खद पहलू था। हो सकता है उसकी आत्महत्या 'जेनुइन" हो। यह भी हो सकता है, जैसा दिल्ली पुलिस का मानना है कि उसकी आत्महत्या महज एक दुर्घटना हो, एक नाटकीय प्रसंग। लेकिन गजेंद्र की मौत इन मायनों में अपने लक्ष्य को अर्जित करने में जरूर कामयाब रही कि उसने किसानों की दुर्गति की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट...
More »कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा- पवन के वर्मा
सरकार की आर्थिक दृष्टि औद्योगिक गलियारों, राजमार्गों, बुलेट ट्रेनों और स्मार्ट शहरों तक ही सीमित है. भारत को इनकी जरूरत है, लेकिन सरकार एकतरफा ढंग से उस भारत को छोड़ इन लक्ष्यों के पीछे नहीं भाग सकती है जहां आत्महत्याओं की संख्या और लोगों की तकलीफें बेतहाशा बढ़ रही हैं. भाजपा को याद करना चाहिए कि सर्वाधिक 18,241 आत्महत्याएं 2004 में हुई थीं, जब पार्टी ‘शाइनिंग इंडिया' की बात करती...
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