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परिचर्चा: विकास की अवधारणा

निमंत्रण                      परिचर्चा: विकास की अवधारणा                                 डॉ. शिवराज सिंह (योजना मंडल) और प्रो. हनुमंत यादव,                                                 चर्चा में- बी.के.मनीष के साथ.   छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच की ’विधानसभा चुनाव जागरूकता कार्यक्रम श्रृंखला” की पहली कड़ी.                       सायं ४ बजे, मंगलवार, २२ अक्टूबर, प्रेस क्लब, रायपुर. धार्मिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को पार कर के अब चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। जहां राज्य और केंद्र की वर्तमान सरकारें चहुंमुखी विकास विकास के दावे करते नहीं थक रही हैं वहीं...

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सूपेड़ी और लूंधीया बने पानीदार गांव

गुजरात के सुप्रसिद्ध लोक साहित्यकार स्वर्गीय झवेरचंद मेघाणी ने आजादी के कुछ ही वर्ष पूर्व सौराष्ट्र की लोक कथाओं में अनेक नदियों में आई बाढ़ का उल्लेख किया है. आज वही सौराष्ट्र पिछले कुछ समय से अकाल ग्रस्त और सूखा ग्रस्त क्षेत्र घोषित होने लगा है. आजादी के 50 वर्ष में ही गुजरात की छोटी-बड़ी सभी नदियां सूख गईं और कृषि प्रधान गुजरात अब सूखाग्रस्त गुजरात हो गया. कभी सागर के नाम से...

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भूख के खिलाफ जंग में अब भी पीछे भारत- अरविन्द मोहन

कायदे से जिस साल भारत में खाद्य सुरक्षा कानून बना है और भोजन के हक पर व्यापक चर्चा हुई, उसमें तो संयुक्त राष्ट्र  के संगठन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) द्वारा जारी नये हंगर इनडेक्स की भी खूब चर्चा होनी चाहिए थी, पर ऐसा नहीं हुआ. कुछेक अखबारों में थोड़ी विस्तृत और बाकी में हल्के-फुल्के ढंग से खबर छप कर बात समाप्त हो गयी. कुछ लोग इस बात से संतुष्ट दिखे कि...

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पाकिस्तान और बांग्लादेश से ज्यादा भारत में है भुखमरी

नयी दिल्ली: खुद को उभरती हुई आर्थिक शक्ति मान कर इतराने वाले भारत के लिए शायद यह खबर शर्मनाक है. दुनिया में भुखमरी के शिकार जितने लोग हैं, उनमें से एक चौथाई लोग सिर्फ भारत में रहते हैं. इस मामले में हमारी हालत पाकिस्तान, बांग्लादेश व अन्य पिछड़े मुल्कों से भी खराब है. भुखमरी मापने वाले सूचकांक ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) ने 2011-2013 की अपनी रिपोर्ट में भारत को 63...

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कुप्रबंध की संस्कृति- हरिवंश

देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....

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