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Event | परिचर्चा: विकास की अवधारणा

परिचर्चा: विकास की अवधारणा

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published Published on Oct 21, 2013   modified Modified on Oct 21, 2013

निमंत्रण
                     परिचर्चा: विकास की अवधारणा
                                डॉ. शिवराज सिंह (योजना मंडल) और प्रो. हनुमंत यादव,

                                                चर्चा में- बी.के.मनीष के साथ.

 
छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच की ’विधानसभा चुनाव जागरूकता कार्यक्रम श्रृंखला” की पहली कड़ी.
                      सायं ४ बजे, मंगलवार, २२ अक्टूबर, प्रेस क्लब, रायपुर.

धार्मिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को पार कर के अब चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। जहां राज्य और केंद्र की वर्तमान सरकारें चहुंमुखी विकास विकास के दावे करते नहीं थक रही हैं वहीं विपक्ष भी विकास के मुद्दे पर ही सत्ता छीनने की कोशिश कर रहा है। इस हड़बोंग में आम जनता और खास तौर पर आदिवासी तबका तथाकथित विकास में अपना हिस्सा तलाश कर रहा है।

विकास की परिभाषा को लेकर यह असमंजस केवल आम जनता और राजनीतिक पंडितों तक सीमित नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर अर्थशास्त्री, पर्यावरणविद, राजनेता और प्रशासक इस मसले पर आरोप-प्रत्यारोप की अंतहीन श्रृंखला में उलझे नज़र आते हैं। विकास की अवधारणा के मसले पर प्रचुर संसाधन और बहुसंख्य आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ है। ऎसे में विकास की अवधारणा पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता महसूस करते हुए छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच वरिष्ठ पत्रकारों और बुद्दिजीवी समाज के लिए एक परिचर्चा आयोजित कर रहा है ताकि समाचार संपादक, अधिवक्ता, व्याख्याता सरीखे लोग ज्यादा सार्थक चर्चा कर सकें।

भारत के दो सबसे प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और जगदीश भगवती ऎतिहासिक तरीके से इस मामले को लेकर  अकादमिक ध्रुवीकरण कर रहे है। राज्यों में वैसे तो नायडू और दीक्षित के बाद से ही विकास के मुद्दे पर चुनाव जीतने की परंपरा तैयार हो रही है लेकिन केंद्रीय राजनीति का अलग असर अब यहां की बहसों में भी दिख रहा है। मजे की बात यह है कि विकास की बहस पर कब्जा जमाने की वाणिज्य-आर्थिकी और सामाजिक-आर्थिकी  की होड़ में यह बात भुला सी दी गई है कि विकास असल में प्राथमिक तौर पर दर्शन-शास्त्र की विषय-वस्तु है। और भी आश्चर्य इस बात का है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, नागरिकी और पर्यावरण तक के विद्वान विकास की बहस में जूझने को तैयार दिखते हैं लेकिन नृशास्त्रियों की भू्मिका बहुत सतही रही है। इसे ऎसे भी समझ सकते हैं कि ट्राईबल डेव्लपमेंट को हमेशा “आदिवासी-विकास” के रूप में समझा गया है न कि "आदिवासियत-विकास" के रूप में। छत्तीसगढ़-म.प्र. के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र एक अच्छा अवसर हो सकता है कि विकासको समझने की एक गहरी, तकनीकी, सार्थक पर सरल कोशिश की जाए। इसी
उद्देश्य से हम एक चर्चा का आयोजन कर रहे हैं जिसमें विषय के दो प्रखर विद्वानों डॉ. हनुमंत यादव और डॉ. शिवराज सिंह से विषय की बारीकियां जानने की कोशिश की जाएगी।

कार्यक्रम की रूप-रेखा:
प्रथम चरण (१५ मिनट)- विकास की सैद्धांतिक और व्यावहारिक परिभाषा
द्वितीय चरण (१५ मिनट)-            छत्तीसगढ़ में विकास का कार्यकाल-वार सफ़र
तृतीय चरण (१५ मिनट)- भावी विकास की दिशाएं और दबाव
प्रश्नोत्तर (४५ मिनट)-       टिप्पणियां और शंकाएं, खुली चर्चा.

निवेदक-
उमा प्रकाश ओझा
(मो.) 9425210113


प्रेस क्लब, रायपुर.


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