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वेश्यावृत्ति से मुक्त हुई बच्चियों का पुनर्वास हो

नई दिल्ली, [जागरण ब्यूरो]। बाल वेश्यावृति पर गंभीर चिंता जताते हुए कोर्ट ने सरकार से उनका ठीक-ठाक पुनर्वास करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें मुक्त करा कर गलियों में छोड़ देने से कुछ नहीं होगा। जब तक उनके पुनर्वास का ठीक-ठाक इंतजाम ना हो, सरकार उनकी शिक्षा और आश्रय का इंतजाम करे। कोर्ट ने ये टिप्पणियां बाल मजदूरी, वेश्यावृति और अंगों के व्यापार के लिए बच्चों की तस्करी की समस्या पर सुनवाई के...

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ऑपरेशन ग्रीन-हंट- घाव पर मरहम या जले पर नमक ?

क्या छत्तीसगढ़ में विधि व्यवस्था और सांविधानिक संरचना टूट चुकी है। भले ही सूबे की सरकार इससे इनकार करे मगर देश के कुछ सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित नागरिक संगठन कम से कम ऐसा ही मानते हैं। कई नागरिक संगठनों ने सरकारी अधिकारियों, अदालत और यहां तक की प्रधानमंत्री को भी ऑपरेशन ग्रीनहंट के तहत हो रही उस पुलिसिया ज्यादती के बारे में लिखा है जिसे सूबे की पुलिस और अर्द्धसैनिक बल...

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सूचना के दायरे में आते हैं चीफ जस्टिस : हाईकोर्ट

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। अपने 88 पन्नों के फैसले में चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह, जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस डा.एस.मुरलीधर की फुल बेंच ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेवारी है। हाईकोर्ट का यह फैसला देश के प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन के लिए एक निजी धक्के...

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चीफ जस्टिस का दफ्तर भी आरटीआई के दायरे में

नई दिल्ली. एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट की स्‍पेशल बेंच ने कहा है कि देश के चीफ जस्टिस का दफ्तर भी सूचना के अधिकार के दायरे में आता है। साथ में ही इस कानून के तहज जजों को अपनी संपत्ति का भी ब्यौरा देना होगा। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाह और जस्टिस एस.मुरलीधर और विक्रमजीत सेन की बेंच ने कहा उच्च न्यायपालिका जनता के लिए उतनी ही अधिक जिम्मेदार होती है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री...

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जजों की कमी से लंबित हो रहे मुकदमे

लखनऊ। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन ने कहा कि अदालतों में लंबित मुकदमों की फेहरिस्त जजों की कमी की वजह से बढ़ती जा रही है। अदालतों में अवस्थापना सुविधाओं की कमी शिद्दत से महसूस की जा रही है। न्यायालयों में पर्याप्त संख्या में कोर्ट नहीं हैं। दु:खद तो यह है कि कई राज्य सरकारें अदालतों के विकास में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। यदि अदालतों में स्वीकृत संख्या के अनुरूप जजों की तैनाती...

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