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कारखानों के कचरे से प्रदूषित हुआ राजस्थान का बिछड़ी गांव, 35 साल बाद भी न्याय का इंतजार

मोंगाबे हिंदी, 27 सितम्बर  बिछड़ी गांव की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए आपको ज्यादातर घरों के बाहर रखे या खिड़कियों पर लटके हुए सभी आकार के पानी के कंटेनर दिखाई देंगे। ऐसा ही एक घर गांव में रहने वाली 50 साल की आदिवासी महिला लहरी देवी का है। उनका घर आधा बना हुआ है। टिन के शेड से ढका हुआ है। लहरी देवी का घर राजस्थान के इस गांव में प्रवेश...

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सौर ऊर्जा वाले करघों से बदल रही है भारत के रेशम बुनकरों की ज़िंदगी

द थर्ड पोल , 27 सितम्बर  असम के कोकराझार जिले के भौरागवाजा गांव में बुधरी गोयारी, अपने आंगन में ‘एरी’ रेशम के कोकून की रीलिंग में व्यस्त हैं। रेशम के कोकून के अपने कंटेनर के पास, गोयारी, सौर ऊर्जा से चलने वाली रीलिंग मशीन के साथ बैठी हैं। बोडो जनजाति की गोयारी, भारत के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों की उन 20,000 महिलाओं में से एक हैं, जिनके पास दिल्ली स्थित एक सामाजिक...

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आदिवासी क्यों कर रहे हैं समान नागरिक संहिता का विरोध ?

"यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। आप मुझे बताइये, एक घर में, परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो, तो क्या वो घर चल पाएगा? कभी भी चल पाएगा? समर्थकों की ओर से जवाब आता है नहीं। फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। हमें याद रखना है कि भारत के...

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पी.वी. सतीश : लीक से हटकर लकीर खींचने वाले शख्स

बिना शोरगुल मचाए उसने काम किया। न काम का श्रेय लिया; बस अपने हिस्से का काम किया। और एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका जाना भी खामोशी की तहों में छिप गया। लेकिन, पहले भी उनका काम बोल रहा था और आज भी उनका काम बोल रहा है।  पी.वी. सतीश; पेरियापटना वेंकटसुब्बैया सतीश। आपकी पैदाइश सन् 1945 के जून महीने की है। जन्म, कर्नाटक के मैसूर जिले के खाते–पीते...

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गुजरात में ‘अतिरिक्त’ राशन कार्ड रद्द करने से सबसे अधिक आदिवासी प्रभावित होंगे: रिपोर्ट

द वायर , 5 अप्रैल गुजरात सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के ‘अतिरिक्त’ राशन कार्डों को रद्द करने का आदेश पारित किया है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के बिना उठाया गया था. ‘अतिरिक्त’ राशन कार्डों को रद्द करने का आदेश 80,000 से अधिक आदिवासी परिवारों के पांच लाख से अधिक लोगों को उनके भोजन के मूल अधिकार से वंचित...

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