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UNU-INWEH रिपोर्ट: बूढ़े हो रहे बड़े बांधों का तीव्रता से निपटान करने के लिए प्रोटोकॉल जारी करने की जरूरत!

बड़े बांध जो पर्यावरणीय क्षति और बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बने हैं, उनका भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA), नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट (NAPM) और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) जैसे नागरिक समाज संगठनों (CSO) द्वारा विरोध किया गया है. संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के कनाडा स्थित इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ के साथ-साथ अन्य साथी संगठनों द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से पता...

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बीतते दिनों के साथ लॉकडाउन से धीरे-धीरे बाहर निकलता भारत

-न्यूजक्लिक, 18 मई को कोविड-19 को लेकर पूरे भारत में लागू होने वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय निर्देश एक निर्धारिक पल को चिह्नित करते हैं। देश ने सफलतापूर्वक एक चुनौतीपूर्ण अवधि से पार पा लिया है। चीनी दार्शनिक कन्फ़्यूशियस ने एक बार कहा था, "कामयाबी पिछली तैयारी पर निर्भर करती है, और इस तरह की तैयारी के बिना नाकाम होना तय होता है।" आख़िरी चरण में प्रवेश कर रहे राष्ट्रव्यापी...

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ताकि मिले बढ़ती आबादी का फायदा- प्रो.सुरेश शर्मा

देश-दुनिया की तमाम सरकारों और नीति-निर्माताओं के लिए आज यह याद करने का दिन है कि जनसंख्या और उससे जुड़े मसलों का हल उनकी विकास-नीतियों के मूल में होना चाहिए। भारतीय संदर्भ में देखें, तो 1920 के दशक तक हमारे हिस्से में अत्यधिक जन्म-दर और मृत्यु-दर रही है, पर उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट देखी गई। जन्म-दर, मृत्यु-दर और जनसंख्या वृद्धि का परस्पर संबंध किसी देश की जनसंख्या का...

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दुनिया के खुशहाल देशों की रैंकिंग में लगातार तीसरे साल पिछड़ा भारत

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र विश्व खुशहाली रिपोर्ट में इस साल भारत 140 वें स्थान पर रहा जो पिछले साल के मुकाबले सात स्थान नीचे है. फिनलैंड लगातार दूसरे साल इस मामले में शीर्ष पर रहा. इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी पिछड़ गया है. संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क ने बुधवार को यह रिपोर्ट जारी की. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में 20 मार्च को विश्व खुशहाली...

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पर्याप्त सरकारी मदद के जरिये ही पहुंच सकती हैं सभी तक स्वास्थ्य सेवाएं

भारत के विशाल और विविध भू-भागों में रहने वाली आबादी तक समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती रही है. इसमें बड़ी कमी सरकारों की रही है, जो अपने कुल बजट का महज एक फीसदी तक हिस्सा ही सार्वजनिक स्वास्थ्य मद में खर्च करती रही है. स्वास्थ्य क्षेत्र के समूच परिदृश्य समेत इससे संबंधित अन्य पहलुओं को इंगित कर रहा है आज का वर्षारंभ ... अनंत कुमार एसोसिएट प्रोफेसर,...

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