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कृषि बिल: जितनी आसानी से पीएम ने कह दिया, उतनी आसान नहीं है यह जीत

-न्यूजलॉन्ड्री, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करते हुए किसानों से माफी मांगी. किसान एक साल से दिल्ली के अलग-अलग बार्डर पर विवादित कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. पीेएम मोदी के ऐलान के बाद माना जा रहा है कि उनकी यह तपस्या सही साबित हुई. हालांकि किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा,...

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हीरा ज़रूरी या जंगल: 55,000 करोड़ वाली हीरे की ख़दानों की पड़ताल

-बीबीसी, एक डरावना सा जंगल कैसा होता है, सिर्फ़ किताबों में पढ़ा था और डिस्कवरी चैनल पर ही देखा था. कहानियाँ भी सुनी थीं, उनकी- जिनकी ज़िंदगी में इस जंगल के सिवा कुछ नहीं होता. एक दोपहर सन्नाटे को चीरते हुए उस घने जंगल में सागौन के दरख़्तों से निकलकर थोड़ी रोशनी में पहुँचे तो फटे-पुराने कपड़े पहने हुए एक व्यक्ति को कुछ पत्तियाँ और टहनियाँ बीनते हुए पाया. पता चला वो भगवान दास...

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नमामि गंगे परियोजना के काम में मैला ढोने से हुई मौत लेकिन न मिला मुआवजा, न हुआ मामला दर्ज

-कारवां, इस साल मई में पटना के बेउर इलाके में केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना में काम करते हुए दो मजदूरों की गटर में घुसने के बाद मौत हो गई. वहां काम करने वाले तीन मजदूरों के मुताबिक उन्हें आवश्यक बचाव उपकरणों के बिना ही गटर में घुसने को कहा गया था. एक मजदूर ने मुझे बताया कि लार्सन एंड टुब्रो, जिसके पास बेउर साइट का ठेका है, के इंजीनियर ने...

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हाथरस ‘सामूहिक बलात्कार’ की घटना का एक साल: गहराता जाति विभाजन, कोर्ट रूम ड्रामा और एक बेटी की यादें

-द प्रिंट, हाथरस में ‘सामूहिक बलात्कार’ की पीड़िता 20 वर्षीय युवती के घर की दीवारों पर उसकी कोई तस्वीर नहीं लगी है. बेटी के शव का जबरन दाह संस्कार किए जाने के दिन मां ने जो साड़ी पहनी थी, वह बरामदे की छत पर टंगी नजर आ रही है. एक तुलसी के पौधे की ओर इशारा करते हुए उसकी मां ने कहा, ‘न्याय मिलने के बाद हम उसकी एक बड़ी तस्वीर बनवाकर लगवाएंगे....

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महंगाई और महामारी: करोड़ों के हाथ आई गरीबी

-आउटलुक, “कोविड-19 से हर तबका प्रभावित, कोई बिजनेस बेचने तो कोई मेड का काम करने को मजबूर, लेकिन अमीरों की अमीरी भी बढ़ी” अभी एक ही दशक हुआ जब भारतीयों ने अपने खर्च के तौर-तरीके और जीवन शैली में बदलाव लाना शुरू किया था। वे बचत की परंपरागत सोच की जगह खर्च करने पर ज्यादा जोर दे रहे थे। भारतीयों की सोच में आए इस बदलाव पर पश्चिमी देशों का स्पष्ट प्रभाव...

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