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पिछले पांच वर्षों में 1798 परियोजनाओं में किया गया पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन

-न्यूजलॉन्ड्री, पिछले पांच वर्षों में करीब 1798 परियोजनाओं ने देश में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों का उल्लंघन किया है. यह जानकारी राज्यसभा में श्रीमती वेदना चौहाण द्वारा पूछे एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है. इन परियोजनाओं में सबसे ज्यादा हिस्सा औद्योगिक परियोजनाओं का है. जिसमें 679 परियोजनाओं में नियमों का उल्लंघन किया गया है. इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीआरजेड की 626 परियोजनाएं, कोयले को छोड़कर खनन से जुड़ी 305 परियोजनाएं,...

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फडणवीस सरकार पर तमिलनाडु के राज्यपाल के शिक्षा ट्रस्ट को जमीन का अवैध पट्टा देने का आरोप

-द कारवां, अधिवक्ता सतीश उइके ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज कर नागपुर के खापरखेड़ा गांव में दस एकड़ जमीन के भूराजस्व रिकॉर्ड से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है. यह भूमि महाराष्ट्र के दिग्गज नेता बनवारीलाल पुरोहित से जुड़े एक ट्रस्ट को पट्टे पर दी गई है. महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महागेंको) ने यह जमीन शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत ट्रस्ट, भारतीय विद्या भवन, को नवंबर 2015 में पट्टे पर दी...

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महामारी की आड़ में जनता को जनसुनवाई से महरूम करने की कोशिश?

-न्यूजलॉन्ड्री, लॉकडाउन के समय जनता घर में बंद थी और लाखों मजदूर सड़क पर थे. ऐसे में केंद्र सरकार ने पूर्व में बनाए गए कई नियम-कानूनों में ऐसे संशोधन प्रस्तावित कर दिए जिन्हें यदि वह सामान्य समय में प्रस्तावित करती तो उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ता. इन प्रस्तावित संशोधनों में सबसे महत्वपूर्ण संशोधन है केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए यानी एनवायरमेंट इंपैक्ट ऐससमेंट)...

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वायु प्रदूषण को रोकने के लिए फसल चक्र बदलने की जरूरत

  हाल के समय में उत्तर भारत और विशेषकर दिल्ली एनसीआर वायु प्रदूषण की चपेट में है। अक्टूबर-नवंबर में हवा की गुणवत्ता न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई है। मीडिया रिपोर्टों में इसका बड़ा कारण पराली ( धान फसल के ठंडल) जलाना बताया गया है, और इससे दिल्ली और आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर खासा प्रभाव पड़ रहा है। सिस्टम आफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फारकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR-India) की वेबसाइट...

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महसूस क्यों नहीं हो रहे अच्छे दिन-- आर सुकुमार

इस समय भारत के आर्थिक माहौल के बारे में दो प्रतिस्पद्र्धी कहानियां हैं। दोनों की प्रकृति भले ही एक-दूसरे से अलग हो, लेकिन हैं दोनों सही। जेपी मॉरगन के मुख्य अर्थशास्त्री साजिद जेड चिनॉय की इन्हीं पंक्तियों के साथ आज मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। चिनॉय का यह लेख 19 जुलाई को मिंट में प्रकाशित हुआ था। शीर्षक था- इंडियन इकोनॉमी : अ टेल ऑफ टू नैरेटिव्स। जिन पाठकों...

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