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कोविड-19 और दीर्घकालिक गरीबी: ग्रामीण राजस्थान से साक्ष्य

-आइडियाज फॉर इंडिया, प्रारंभिक गणना के आधार पर, भारत में कोविड-19 के कारण 7.7 से 22 करोड़ लोग गरीबी में आ गए हैं, जिसके अनुसार अब शहरी आबादी में गरीब 60% और ग्रामीण आबादी में 70% हो गए हैं। वर्ष 2002 में ग्रामीण राजस्थान में किए गए सर्वेक्षण के 2021 में किये गए फॉलोअप के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि परिवारों को मार्च 2020-अगस्त 2021 के दौरान अपनी नकद आय का...

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पुणे में 5.72 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेवार था ठंड का कहर, लू से ज्यादा लोगों की ले रहा है जान

-डाउन टू अर्थ, पुणे में तापमान और मृत्युदर के संबंध को लेकर किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि ठंड का कहर लू और गर्मी से कहीं ज्यादा लोगों की जान ले रही है। शोध के अनुसार जहां पुणे में हुई कुल मौतों में से 5.72 फीसदी के लिए ठण्ड का कहर जिम्मेवार था। वहीं लू और गर्मी के चलते 0.84 फीसदी...

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यूपी चुनाव: बुंदेलखंड से पलायन जारी, सरकारी नौकरियों का वादा अधूरा

-न्यूजक्लिक, शनिवार की दोपहर का वक़्त है और 23 वर्षीय राजीव पटेल उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले से चंडीगढ़ जाने के लिए रेलवे आरक्षण हासिल करने की कोशिश में व्यस्त हैं. बांदा-चित्रकूट के पाठा क्षेत्र के निवासी पटेल पिछले सात वर्षों से चंडीगढ़ और पंजाब और हरियाणा के अन्य शहरों में रसोइए के रूप में काम कर रहे हैं। उनके पास कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है फिर भी रोज़गार की तलाश में...

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एनएफएचएस-5 : भारत में अब भी पुरुषों से ज्यादा नहीं हैं महिलाएं , जानिए क्यों?

-डाउन टू अर्थ, पांचवे चरण के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के मुताबिक भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 पहुंच गई है। ऐसा उत्साहजनक आंकड़ा अब तक के सभी पुराने चार एनएफएचएस ( 1992 से 2016 तक) रिपोर्ट में कभी नहीं दर्ज किया गया। इसके बावजूद यह उत्साह का विषय नहीं है क्योंकि लिंगानुपात के मुद्दे पर काम करने वाले एक्सपर्ट यह मानते हैं कि एनएफएचएस के...

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नवीनतम पीएलएफएस डेटा, विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के बीच अल्प-रोजगार और स्वपोषित रोजगार में अवैतनिक सहायकों पर प्रकाश डालता है

आम तौर पर, अर्थशास्त्री एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष अवधि में बेरोजगारी और काम से संबंधित अनिश्चितता की सीमा का आकलन करने के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) जैसे संकेतकों का उल्लेख करते हैं. हालांकि, अन्य संकेतक भी हैं, जो रोजगार की स्थिति, आजीविका सुरक्षा और श्रमिकों की बदत्तर स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते...

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