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डिजिटल कवरेज से डरे बीजेपी मंत्रियों द्वारा आलोचना करने वाले पत्रकारों को ट्रैक करने और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकुश का प्रस्ताव

-द कारवां, डिजिटल न्यूज और सोशल मीडिया को नियंत्रण करने के लिए सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम के पीछे वह रोडमैप है जो कोविड महामारी की चरम अवस्था में सरकार द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में बताया गया था. इस रिपोर्ट को जिस मंत्रियों के समूह या जीओएम ने तैयार किया था उसमें पांच कैबिनेट स्तरीय और चार राज्यमंत्री थे. उस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास...

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किस हाल में हैं असम के डिटेंशन कैंपों में बंद संदिग्ध नागरिक?

-सत्यहिंदी, पिछले साल असम के डिटेंशन कैंप उस समय चर्चा में आए थे जब 23 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि भारत में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है। उन्होंने इसे अफ़वाह बताया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘सिर्फ कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों द्वारा उड़ाई गई डिटेन्शन सेन्टर वाली अफ़वाहें सरासर झूठ है, बद-इरादे वाली है, देश को तबाह करने के नापाक इरादों...

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क्या मनरेगा के लिए आंवटित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मददगार साबित होगा ?

साल 2020 की शुरुआत में सामाजिक कार्यकर्ताओं और संबंधित अर्थशास्त्रियों ने साल 2020-21 के लिए गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत कम से कम 1 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की. लेकिन 1 फरवरी को वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मनरेगा के तहत केवल Rs.61,500 करोड़ आवंटित किए. जोकि 2019-20 में मनरेगा पर खर्च किए गए फंड की तुलना...

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फैक्ट चैक : कोरोनावायरस लॉकडाउन में मोदी सरकार के दस बड़े झूठ

-कारवां, 24 मार्च को जब केंद्र सरकार ने नोवेल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो सरकार के प्रतिनिधियों और मंत्रियों ने अपनी राजनीति को सही ठहराने और आलोचना से पल्ला छुड़ाने के लिए जनता के बीच लगातार आधी-अधूरी और झूठी बातें प्रचारित की. अधिकारियों ने जो दावे किए उनमें से कई जमीनी रिपोर्टों से मेल नहीं खाते. देश के कई हिस्सों में भूख और भुखमरी...

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जैसा बताया जाता है, क्या नेताजी और महात्मा गांधी के बीच वैसी ही दूरियां थीं?

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर जब आप ये शब्द पढ़ रहे होंगे, उसी समय सोशल मीडिया से लेकर अन्य मंचों पर नेताजी के बरक्स महात्मा गांधी की भी चर्चा चल रही होगी. ठीक है कि भारत की आज़ादी का कोई भी विमर्श महात्मा गांधी का नाम लिए बिना पूरा नहीं हो पाता. लेकिन आज नेताजी को महात्मा के खिलाफ ऐसे ही खड़ा किया जा रहा है मानो...

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