हाल ही में पास हुए 2018 के फाइनेंस बिल में एक महत्वपूर्ण हिस्सा एफसीआरए (फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगूलेशन एक्ट 1976) के संशोधन का है. इसकी शुरुआत 2013 से शुरू होती है, जब यूपीए सरकार ने इलेक्टोरलर ट्रस्ट की एक नयी स्कीम लागू की थी, जिसमें सरकार ने कहा था कि चंदा देनेवाली कंपनियों और राजनीतिक दलों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी जायेगी, ताकि उनका आपस में कोई गठजोड़...
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नोटबंदी का हासिल कुछ नहीं-- तवलीन सिंह
नोटबंदी की सालगिरह पर पिछले हफ्ते दोनों पक्षों ने अपने आप को सही साबित करने की कोशिश की। वित्तमंत्री ने दावा किया कि नोटबंदी करके नरेंद्र मोदी ने साबित किया है दुनिया की नजरों में कि भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने के इस महासंग्राम में वे अपने राजनीतिक फायदे और अपनी लोकप्रियता को भी ताक पर रख सकते हैं। दूसरी तरफ थे अपने अक्सर मौन रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री,...
More »लोकतंत्र का गड़बड़ लेखा-- अरुण कु. त्रिपाठी
वर्ष 2015-16 के बारे में एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म्स (एडीआर) की ताजा रपट बताती है कि हमारे लोकतंत्र का हिसाब गड़बड़ है. आयकर विभाग की सारी चुस्ती राजनीतिक दलों के दरवाजे पर आकर ठिठक जाती है और चुनाव आयोग भी उन अंधेरे हिस्सों में रोशनी डालने की कोशिश नहीं करता, जो पार्टियों के गुप्त तहखाने कहे जा सकते हैं. यह स्थितियां फिर हमारे लोकतंत्र को पारदर्शी और नैतिकता पर आधारित...
More »विषमता की बढ़ती खाई-- जयराम शुक्ल
मुट्ठी भर गोबरी का अन्न लेकर लोकसभा पहुंचे डॉ राममनोहर लोहिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूसे कहा- लीजिए, आप भी खाइए इसे, आपके देश की जनता यही खा रही है। पिछले दिनों जब विश्व के भुखमरी सूचकांक (हंगर इंडेक्स) में 119 देशों में भारत के सौवें स्थान पर होने के बारे में पढ़ा तो 1963 का नेहरू-लोहिया का वह प्रसंग जीवंत हो गया, जिसमें लोहिया ने तीन आने बनाम पंद्रह...
More »राजनीति के मैदान में काले धन का खेल-- सुधांशु रंजन
चुनाव प्रणाली और काले धन के रिश्ते इन दिनों फिर चर्चा में हैं। राजनीतिक दलों के लिए धन चंदे से आता है। लेकिन न तो चंदा देने वाला और न ही लेने वाला इसे सार्वजनिक करना चाहता है। यह गुपचुप कारोबार ही भारतीय राजनीति को कलुषित करता है। केंद्र सरकार ने राजनीतिक जगत में नकद के खेल को कम करने के लिए एक कदम उठाया है। अब जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,...
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