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स्वच्छता, समाज और सरकार-- सुभाष गताडे

एक सौ पांच साल की कुंवर बाई, जिन्होंने अपनी बकरियां बेच कर शौचालय का निर्माण कराया, ‘स्वच्छता दिवस' के अवसर पर दिल्ली में सम्मानित की जाएंगी। खबरों के मुताबिक कुंवर बाई ने कोटाभररी नामक अपने गांव (जिला राजनांदगांव) में स्त्रियों को खुले में शौच जाने की असुविधा से बचाने के लिए यह निर्माण कराया। बेशक कुंवर बाई का सरोकार व त्याग काबिले-तारीफ है और उनको स्वच्छता दूत नियुक्त किया जाना,...

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खेल से वंचित होते बच्चे-- सुभाष गताडे

दिल्ली के मुंडका इलाके के बच्चे इन दिनों दुखी हैं। दरअसल, इस इलाके में उपलब्ध एक सौ सैंतालीस एकड़ खुली जमीन पर सरकार ने औद्योगिक परिसर बनाने का निर्णय लिया है। इसके इर्दगिर्द कम-से-कम आठ लाख लोग रहते हैं, जिनके बच्चों के खेलने के लिए यही एकमात्र खुली जगह है। जाहिर है कि इससे न केवल प्रदूषण में बढ़ोतरी होगी बल्कि बच्चे खुले में ही खेलने के लिए मजबूर होंगे...

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धर्म, समाज और स्त्री-- सुभाष गताडे

परंपरा की दुहाई देते हुए या आस्था की बात करते हुए क्या समाज के एक हिस्से के साथ प्रगट भेदभाव किया जा सकता है? यह मसला महिलाओं के प्रार्थना-स्थल तक या उसके सबसे ‘पवित्र हिस्से' तक पहुंचने के बहाने उठता रहा है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का शनि शिंगनापुर मंदिर हंगामे की वजह बना। पुणे के एक सामाजिक संगठन की महिलाओं ने वहां पहुंच...

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आंकड़े क्यों घटते दिख रहे हैं-- सुभाष गताड़े

दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...

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गरीबी के आंकड़ों के विरोधाभास-- सुभाष गताड़े

विश्व बैंक के मुताबिक, भारत में अत्यधिक गरीबी के नीचे रहनेवाली आबादी वर्ष 2015 में घट कर 9.6 फीसदी हो गयी है. वर्ष 2012 में यह संख्या 12.8 फीसदी थी. वर्ष 1990 में जबसे विश्व बैंक ने यह आंकड़े इकट्ठा करने शुरू किये, तबसे पहली दफा ऐसी कमी दिखाई दी है. इसके बरक्स विश्व बैंक के ही मुताबिक, कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में नीचे है...

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