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आंकड़े क्यों घटते दिख रहे हैं-- सुभाष गताड़े

दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...

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गरीबी का फंदा तोड़ने के वास्ते-- प्रमोद जोशी

आर्थिक विकास, व्यक्तिगत उपभोग और गरीबी उन्मूलन के बीच क्या कोई सूत्र है? यह इक्कीसवीं सदी के अर्थशास्त्रियों के सामने महत्वपूर्ण सैद्धांतिक प्रश्न है. पिछले डेढ़-दो सौ साल में दुनिया की समृद्धि बढ़ी, पर असमानता कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी. ऐसा क्यों हुआ और रास्ता क्या है?  इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रिंसटन विश्वविद्यालय के माइक्रोइकोनॉमिस्ट प्रोफेसर एंगस डीटन को देने की घोषणा की गयी है. वे लंबे अरसे...

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लोकतंत्र को दबोचता बर्बर भीड़तंत्र-- उर्मिलेश

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 35 किमी की दूरी पर ग्रेटर नोएडा के एक गांव बिसायरा में सोमवार की रात कुछ लोगों ने संगठित ढंग से 50 वर्षीय अखलाक अहमद के घर पर हमला कर उसको मार डाला. अखलाक का 22 वर्षीय बेटा भी अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है.  एकाएक हुए इस हमले, तोड़फोड़, लूटमार और हत्या की वजह क्या थी? एक अफवाह कि अखलाक गोमांस खाता...

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तरक्की तो अपने दम पर ही होगी- यशवंत सिन्हा

स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक समय ऐसा भी था, जब सोवियत संघ के साथ भारत की प्रगाढ़ मैत्री तथा देश में वामपंथियों के बोलबाले के चलते सोवियत संघ के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहना घोर अपराध माना जाता था। मैं संसद में 1988 में आया और मुझे आश्चर्य हुआ जब संसद में भी सोवियत संघ के खिलाफ बोलने पर वामपंथी सदस्यों तथा अन्य दलों के उनके समान...

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एक वाजिब मांग का पूरा होना- शिवदान सिंह

लंबे अरसे से अटकी वन रैंक वन पेंशन की मांग को पूरा करना सरकार के लिए मुश्किल भरा फैसला भले हो, लेकिन यह पूर्व सैन्यकर्मियों की वाजिब मांग थी। फौजियों का कहना गलत नहीं था कि जब दो फौजी एक पद पर, एक समय तक सेवा देकर सेवानिवृत्त होते हैं, तो उनकी सेवानिवृत्त के वर्षों के अंतर में नया वेतन आयोग भी आ जाता है, जिस कारण बाद में रिटायर...

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