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धीमी पड़ गई है आर्थिक सुधारों की रफ्तार

वाशिंगटन। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने स्वीकार किया कि आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी पड़ी है और 2014 के आम चुनाव से पहले प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। बसु ने दावा किया कि अगले आम चुनाव के बाद वर्ष 2015 से भारत विश्व की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। उन्होंने कहा कि यदि आम चुनाव के बाद पूर्ण...

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खेती की उपेक्षा और खाद्य सुरक्षा- भारत डोगरा

जनसत्ता 21 मार्च, 2012: लोकसभा में पिछले वर्ष प्रस्तुत किए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक से कोई सहमत हो या असहमत, पर इसके महत्त्च से इनकार नहीं किया जा सकता। मौजूदा रूप या इससे काफी मिलते-जुलते रूप में यह विधेयक पारित हो गया तो आने वाले अनेक वर्षों तक इसका हमारी खाद्य और कृषि व्यवस्था पर बहुत व्यापक असर पड़ेगा। इसलिए इस विधेयक से संबंधित जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे...

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अन्न स्वराज- वंदना शिवा

भोजन का अधिकार जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ है और संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस लिहाज से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक स्वागतयोग्य है। पिछले दो दशकों में भारत में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए थे, तब प्रति व्यक्ति भोजन की खपत 178 किलोग्राम थी, जो 2003 में...

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वित्त मंत्री ने बजट में किसानों का रखा खास ध्यान

आम बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने किसानों का खास ध्यान रखा है। उन्‍होंने कृषि क्षेत्र की तरक्की के लिए बजट 18 फीसदी बढ़ाकर 20,208 करोड़ रुपए कर दिया है। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति से खाद्यान्न में हुई बढ़त को और अधिक बढ़ाया जाएगा। खाद्य सुरक्षा विधेयक लागू करने की व्यवस्था की जाएगी। हरित क्रांति के लिए 1000 करोड़ वित्त मंत्री ने कहा कि अब तक के प्रयास से पूर्वी...

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असमानता की खाई पाटने का अवसर : हर्ष मंदर

खाद्य सुरक्षा विधेयक में भारत के लाखों गरीबों और वंचितों की नियति बदलकर रख देने की क्षमता है। दो साल चली बहस के बाद केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी दी। खबरों से पता चला है कि प्रस्तावित कानून के संबंध में स्वयं कैबिनेट मंत्रियों की धारणाएं अलग-अलग थीं। इस पर हुई बहस में भारत में व्याप्त असमानता की संस्कृति की झलक भी मिली। यह भी पता चला कि इस कारण...

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