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गरीबी उन्मूलन के काफी करीब है भारत

दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक और बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह-संस्थापक मेलिंडा गेट्स मानती हैं कि आज का भारत पहले की तुलना में बेहतर है और वह गरीबी उन्मूलन के अपने लक्ष्य के काफी करीब पहुंच चुका है। वह यह भी मानती हंत कि हर भारतीय को आज स्वास्थ्य सेवा मिलती है। पिछले दिनों जब वह दिल्ली आई हुई थीं, तब उनसे विद्या कृष्णन ने विस्तृत बातचीत...

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जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान

जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...

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मर रहे हैं मनरेगा मजदूर-ब्रजेश कुमार झा

पार्वती देवी की बात सुनकर कोई भी सन्न रह जाएगा। वह कहती है, “मनरेगा की वजह से मेरे पति की जान चली गई।” पार्वती देवी दत्ता मघादे की विधवा है। उम्र 45 साल है। गरीबी में डूबी है। इसके बावजूद आगे कहती है, “मैं जिंदगी में दोबारा मनरेगा मजदूरी नहीं करुंगी।” पार्वती देवी जो बता रही है, उससे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की हकीकत बेपर्दा होती है। हालांकि,...

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मानवीय आपदा में मानवाधिकार- सुभाष गाताडे

मानवीय आपदा के वक्त मानवाधिकार का मसला अक्सर ऐसे समय में ही सुर्खियां बनता है, जब किसी क्षेत्र विशेष को बाढ़, भूकंप, सुनामी या अन्य किसी आपदा का सामना करना पड़ रहा होता है। और उस समय की चुनौतियां अलग किस्म की होती हैं, लिहाजा न उस पर बात हो पाती है और न ही अमल हो पाता है। यूरोपीय संघ द्वारा प्रायोजित तथा हाल में प्रकाशित अध्ययन ‘इक्वालिटी इन एड: एड्रेसिंग...

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त्वरित और सस्ता न्याय पाने की सुविधा

मित्रों, अदालत, मुकदमा और पुलिस को लेकर अनेक कहावतें और लोकोक्तियां प्रचलित हैं. इन सभी कहवतों और लोकोक्तियों में इन्हें तबाही और परेशानी का सबब बताया गया है, जबकि अगर पुलिस, अदालतें और मुकदमे दायर करने के जनता को अधिकार न हों, तो समाज में अराजकता अपनी पराकाष्ठा पर होगी. हम सुरक्षित नहीं रह सकते. हमारे मानवीय अधिकारों की रक्षा नहीं हो सकती. हर कोई अपनी ताकत और धन की बदौलत...

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