ऐसे समय में, जब आधार से संबद्ध तीन मामले उस संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए विचाराधीन हैं, जिसका अभी तक गठन ही नहीं हुआ, तब यह लाजिमी है कि हम आधार से जुड़े कुछ मूलभूत सवालों पर विचार करें। इस बात से इनकार करने का कोई आधार नहीं है कि इससे जुड़ी, खासतौर से निजता और सुरक्षा के बिंदु अहम हैं। कहने का आशय यह कि जरूरत...
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किसानी का तीर्थ बनता तिउसा गांव --- बाबा मायाराम
महाराष्ट्र का एक गांव है तिउसा। यवतमाल से सोलह किलोमीटर दूर। यह गांव किसानों के लिए तीर्थ बन गया है। तीर्थ जहां कुछ अच्छाई है, किसान जहां अपना भविष्य देख रहे हैं। यहां बड़ी संख्या में किसान आ रहे हैं। खेती-किसानी की बारीकियां सीख रहे हैं। यहां के प्रयोगधर्मी किसान सुभाष शर्मा कई मायने में अनूठी खेती कर रहे हैं, जिसे वे सजीव खेती कहते हैं। हाल ही मैं अपने कुछ...
More »भारतीय समाज के नए यथार्थ-- ज्योति सिडाना
वर्ष 2016 में सेंटर फॉर द स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कोनराड एडेन्यूर स्टीफटुंग (केएएस) के साथ मिल कर ‘भारत में युवाओं की अभिवृत्ति' विषय पर एक अध्ययन किया। इस सर्वे में पंद्रह से चौंतीस वर्ष के भारतीय युवाओं (देश में युवा आबादी करीब पैंसठ फीसद है) से अनेक सवाल पूछे गए। आंकड़ों के अनुसार अस्सी फीसद युवा ज्यादा चिंतित या असुरक्षित महसूस करते हैं। उनमें चिंता के मुख्य...
More »विकास की बड़ी जिम्मेदारी है इस आयोग पर-- एन के सिंह
तीन साल पहले योजना आयोग को खत्म करके उसकी जगह एक थिंक टैंक के तौर पर नीति आयोग का गठन किया गया था। आलोचक यह सवाल अब तक उठाते हैं कि क्या यह बदलाव मुनासिब साबित हुआ? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने से पहले यह बताना चाहूंगा कि योजना आयोग के तीन बुनियादी काम थे। पहला, केंद्र और राज्यों के बीच सेतु का काम करना। दूसरा, हमारी विकास संबंधी नीतियों...
More »रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज
सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...
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