कल्याणकारी योजनाएं क्या वोटों में तब्दील हो पाती हैं? राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसा नहीं होता। इनका मानना है कि अगर घोषित तौर पर निर्धनों को समर्पित ये योजनाएं वास्तव में वोटों को पाने का कामयाब जरिया होतीं, तो 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले कल्याणकारी एजेंडा रखने वाली कांग्रेस पार्टी की ऐसी दुर्गत न दिखती। कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए के खस्ताहाल को बयां करते हर जनमत सर्वेक्षण के साथ...
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कालाहांडी में बार-बार चढ़ती काठ की हांडी- सलमान रावी
शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
More »चुनावी एजेंडे से उन्हें क्यों बाहर रखा जाता है- सुभाषिनी अली
मुझे बैरकपुर के चुनाव क्षेत्र में रहते अब 20 दिन हो चुके हैं। श्यामनगर, जहां मैं रह रही हूं, वह गांव और छोटे शहर का एक मिला-जुला इलाका है। श्यामनगर का स्टेशन करीब है और यहां से कोलकाता तक जाने वाली लोकल ट्रेनों ने, जो कई दशकों से चल रही है, शहर और शहर से मिलने वाले रोजगार से यहां के लोगों को जोड़कर इलाके को नीम-ग्रामीण बना दिया है। मेरे घर...
More »समावेशी विकास का वायदा- जयराम रमेश
कांग्रेस के 2014 के घोषणापत्र के आवरण पर प्रकाशित 'आपकी आवाज-हमारा संकल्प' बखूबी अपना संदेश प्रकट कर देता है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरे देश में तीस से अधिक सुझावों और 1.3 लाख लोगों के विचारों को शामिल करके तैयार किया गया यह घोषणापत्र लंबे समय से पार्टी के आदर्श रहे न्याय, समता और गरिमा के विचारों पर आधारित है। तेजी से आधुनिक हो रहे देश के लिए यह...
More »गांव मात्र वोटों से ज्यादा कुछ नहीं है- अनिल जोशी
जिस देश का अस्तित्व उसके गांवों से हो, वही नकारे जाएं, तो इससे बड़ी विडंबना कुछ नहीं हो सकती। देश में 8,800 शहर और 22,000 कस्बों की तुलना में साढ़े छह लाख गांव संख्या में कहीं ज्यादा हैं। देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में बसती है, और यह बड़ी संख्या ही इस देश की राजनीतिक दिशा तय करती है। राज्यों के मुख्यमंत्री व देश के प्रधानमंत्री इन्हीं...
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