हिमालयी क्षेत्र में खूबसूरत नजारे वाले लाहौल स्पीति घाटी में 1980 के दशक में एक आंदोलन शुरू हुआ था। महिला कार्यकर्ताओं ने वनों की रक्षा में इस आंदोलन को शुरू किया था। बौद्ध आबादी बहुल इस क्षेत्र में महिलाओं के इस श्रम ने रंग लाया। इस आंदोलन की शुरुआत कवारिंग पंचायत में शुरू हुई, जहां की आबादी 112 थी। इसमें महिलाओं की संख्या 64 थी। बाद में यह आंदोलन घाटी के...
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खाद्य-सुरक्षा: बदले बदले से सरकार नजर आते हैं- चंदन श्रीवास्तव
शांता कुमार की अगुवाई में बीते अगस्त में बनी उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में तीन ऐसी सिफारिशें की हैं, जो सीधे-सीधे खाद्य-सुरक्षा अधिनियम यानी भोजन का अधिकार कानून में प्रदान की गयी हकदारियों पर चोट करती हैं. केंद्र सरकार सोचती है कि लोक-कल्याण की योजनाओं में भ्रष्टाचार होने से कुछ अच्छा होता है, तो भ्रष्टाचार अच्छा है. योजनाओं में भ्रष्टाचार का होना सरकार को चलती हुई योजनाओं से हाथ खींचने...
More »खाद्य सुरक्षा पर दोरंगी चाल -- ज्यां द्रेज़
यूपीए की सरकार में जब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर भारतीय संसद में बहस हो रही थी तो भाजपा के नेताओं ने इसे ज़्यादा मजबूत बनाने की पैरवी की थी. आम चुनावों के बाद जब ख़ुद भाजपा सरकार मे पूर्ण बहुमत में आ गई है तो पार्टी अपना स्टैंड बदलती प्रतीत हो रही है. हाल ही में भाजपा नेता शांता कुमार के अध्यक्षता में बनी एक उच्च स्तरीय समिति ने खाद्य...
More »हमसे स्कूल मत छीनो - निवेदिता
मेरा शहर निहायत बदसूरत है। एक ऐसा शहर जहां पेड़-पौधे नहीं हैं, बाग नहीं हैं और जहां मौसम का फर्क सिर्फ आसमान में नजर आता है। उसके बावजूद कुछ है जिसने घोर दुखों के बीच जीवन को बनाए रखा है, सपने मरने नहीं दिए और जिसने लजाते सौंदर्य का उसकी खोह तक पीछा किया। सबसे अहम बात है जिंदगी के पक्ष में खड़ा रहना, अपनी दुनिया की बेहतरी के लिए...
More »विज्ञान से अछूते क्यों रहें हमारे गांव? - डॉ. अनिल प्रकाश जोशी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों गांवों की बदलती तस्वीर में वैज्ञानिकों की भूमिका पर टिप्पणी कर देश में संस्थानों के दायित्वों की तरफ अहम इशारा किया है। यह बात पूरी तरह सच है कि ये संस्थान इस देश को इंडिया बनाने में ज्यादा चिंतित रहे, न कि भारत। आज भी हमारे देश का बड़ा हिस्सा गांवों में ही बसता है। साढ़े छह लाख गांवों में देश की 70 प्रतिशत...
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