SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 1513

ऊर्जा प्रदेश की खोज में- धीरेन्द्र शर्मा

करीब तीन महीने पहले उत्तराखंड में जब तबाही मची, तो एक राष्ट्र के रूप में हम ऐसी हिमालयी आपदा के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन तब भी कुछ पर्यावरणविदों ने यह घोषणा करने में देर नहीं लगाई कि अनियोजित मानवीय गतिविधियों ने इस आपदा को न्योता दिया है। कुछ ने कहा कि जलविद्युत परियोजनाओं ने मानव जीवन को खतरे में डाल दिया है। सुरंगों के लिए पहाड़ों में किए जाने वाले विस्फोट ने...

More »

आज के संदर्भ में ग्राम-स्वराज- भारत डोगरा

जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2013 : गांधीजी ने ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। लेकिन आजादी मिलने के बाद जो विकास नीति अपनाई गई, उसमें इस सपने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसीलिए ग्रामीण इलाकों से शहरों की तरफ पलायन हमारे नीति नियंताओं को कभी चुभा नहीं। सकल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी भी उन्हें चिंतित नहीं करती। भारत के गांवों में आजादी के बाद कैसा बदलाव हुआ? इतने...

More »

केंद्रीय ग्रामीण विकास रिपोर्ट 2012-13

केन्‍द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने आज यहां अपने मंत्रालय की 2012-13 की रिपोर्ट जारी की। इस अवसर पर योजना आयोग के सदस्‍य डॉ. मिहिर शाह और आईडीएफसी फाउंडेशन के कार्यकारी अध्‍यक्ष डॉ. राजीव लाल ने भी रिपोर्ट के मुख्‍य बिन्‍दुओं पर प्रकाश डाला। बाद में ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श भी हुआ।  श्री जयराम रमेश ने सरकारी कार्यक्रमों के अपने लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने में प्रभावी नहीं होने...

More »

खनन से किसका हित, मिल कर सोचें- ।।किशन पटनायक।।

बिक्री लायक पदार्थो को ‘पण्य’(माल) कहा जाता है और उनके संग्रह को ‘संपत्ति’. आधुनिक समाज में संपत्ति को मूल्यों (रुपयों) में आंका जाता है. मैं अगर करोड़पति हूं, तो मेरी संपत्ति का मूल्य करोड़ों रुपयों में है. दुनिया में जितनी भी संपत्ति है, उनके मूल में हैं प्राकृतिक संसाधन. मेहनत, बुद्धि और मशीनों के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों से विभिन्न पण्य वस्तुओं को बनाया जाता है. मशीनें भी खनिज धातु यानी प्राकृतिक...

More »

शिक्षा केंद्र, बुद्धिजीवी और सत्ता- आनंद कुमार

जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close