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पेरिस समझौते के 5 साल: भारत के 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर मंडरा रहा है जलवायु परिवर्तन का खतरा

-डाउन टू अर्थ, हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन जिलों में देश के करीब 63.8 करोड़ लोग बसते हैं। यह अध्ययन पिछले 50 सालों (1970-2019) के दौरान भारत में आई बाढ़, सूखा, तूफान जैसी मौसम सम्बन्धी आपदाओं के विश्लेषण पर आधारित है। इसमें...

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अमेरिका चुनाव 2020 का परिणाम तय करेगा दुनिया के जलवायु मुद्दों का भविष्य

-डाउन टू अर्थ, जैसा कि अमेरिका में चुनाव की रात होता आया है, राष्ट्रपति पद के लिए दो उम्मीदवारों के घोषित रुख पर एक नजर डाला जाता है, जिससे यह भी पता चलता है कि चुनाव बाद वैश्विक जलवायु आंदोलन की क्या स्थिति होगी।  वैश्विक जलवायु से संबंधित चुनिंदा मुद्दों पर रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड जॉन ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी के जोसेफ बिडेन में काफी अंतर है। जहां बिडेन एक संतुलित...

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ला नीना के बावजूद इतिहास का सबसे गर्म वर्ष बन सकता है 2020: डब्ल्यूएमओ

-डाउन टू अर्थ, विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने हाल ही में ला नीना के बारे में नई जानकारी साझा की है। जिसके अनुसार 2020 में इस घटनाक्रम के मध्यम से मजबूत रहने की सम्भावना है। डब्ल्यूएमओ के क्लाइमेट डिपार्टमेंट से जुड़े मैक्स डिले ने बताया कि ला नीना में तापमान सामान्य से 3 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है। इसके बावजूद अनुमान है कि 2020 इतिहास का सबसे गर्म साल...

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शिकार नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त हुए ऊनी गैंडे : शोध

-डाउन टू अर्थ, अंतिम हिमयुग के अंत में ऊनी मैमथ, गुफा में रहने वाले शेरों, और ऊनी गैंडों जैसे प्रागैतिहासिक मेगाफ्यूना के दुनिया भर में विलुप्त होने को, अक्सर प्रारंभिक रूप से मनुष्यों के विस्तारवाद को जिम्मेदार ठहराया गया है। बड़े जानवरों को मेगाफ्यूना के रूप में जाना जाता है। अध्ययन में दावा किया गया है कि ऊनी गैंडों के विलुप्त होने का एक कारण जलवायु परिवर्तन है। यह अध्ययन  करंट बायोलॉजी...

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ईआईए अधिसूचना का मसौदा किस प्रकार से आदिवासियों और वनवासी समुदायों के अधिकारों से समझौता करना है

-न्यूजक्लिक, जहां एक ओर पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 के मसौदा दस्तावेज की आलोचना व्यापार को आसान बनाने के लिए पर्यावरणीय मानदंडों को खत्म करने की कोशिशों की खातिर की जा रही है, वहीं इन नए प्रावधानों के चलते समाज के कुछ तबकों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। और वे तबके हैं जंगली इलाकों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और अन्य पारम्परिक वनवासी समुदाय के लोग। नई अधिसूचना...

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