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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में- रविभूषण

मुक्तिबोध और फैज जैसे कवियों ने जब ‘अभिव्यक्ति के खतरे उठाने' और ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे' का आह्वान किया था, वे राज्यसत्ता के चरित्र और उसके द्वारा समय-समय पर लगायी गयी पाबंदियों से भली भांति परिचित थे. मुक्तिबोध ने तो नहीं, पर फैज ने राज्यसत्ता के दमन को ङोला भी था. अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का काम सर्वसत्तात्मक और एकदलीय शासन प्रणाली मनमाने ढंग से करती...

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एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मानवाधिकार रिकॉर्ड पर की नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना

लंदन : मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि भारत में नये शासन में सांप्रदायिक हिंसा बढी है और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से हजारों भारतीयों के जबरन बेदखली का खतरा पैदा हो गया है. यहां जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2015 में एमनेस्टी ने 2014 मई के आम चुनावों को लेकर चुनाव संबंधी हिंसा, सांप्रदायिक झडपों और कॉरपोरेट परियोजनाओं पर सलाह मशविरे में नाकामी...

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संविधान की प्रस्तावना से हटाए ‘सेकुलर, सोशलिस्ट’ शब्द!

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर प्रकाशित एक सरकारी विज्ञापन को लेकर विवाद छिड़ गया है। विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना दी गई है, लेकिन उसमें देश के नाम के साथ ‘सोशलिस्ट' यानी समाजवादी और ‘सेकुलर' यानी पंथनिरपेक्ष ये दो शब्द गायब हैं। हालांकि, सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री राजवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि विज्ञापन में प्रकाशित चित्र संविधान की प्रस्‍तावना के मूल संस्‍करण से लिया गया था। समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष...

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क्या वाकई बहुरेंगे रेडियो के दिन- गोविन्द सिंह

यों तो बीते साल बहुत-सी बातें पहली बार हुईं, लेकिन मीडिया के क्षेत्र में जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात हुई, वह थी, रेडियो को मिली अप्रत्याशित तवज्जो। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो को अपने 'मन की बात' कहने के लिए चुना, उससे यह उम्मीद बंधी कि आने वाले दिनों में रेडियो के दिन बहुरेंगे। इंदिरा गांधी के बाद शायद मोदी ही ऐसे राजनेता हैं, जिसने रेडियो...

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अभिव्यक्ति का अधिकार

जनसत्ता,(संपादकीय)पिछले कुछ सालों में इस पर काफी चिंता जाहिर की जा चुकी है कि फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के मंचों पर कुछ टिप्पणियों के आधार पर जिस तरह सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है, उसका देश के लोकतांत्रिक ढांचे और बुनियादी उसूलों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। खासकर सूचना तकनीक कानून की धारा 66-ए पर कई सवाल उठाए गए और अदालतों में इसके खिलाफ...

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