हमारे गांवों का कितना विकास हुआ है. क्या चुनौतियां हैं. विकास के मौजूदा मॉडल से आप कितनी सहमत हैं? मौजूदा विकास को दो-तीन तरह से देखना होगा. पहले समझना होगा कि विकास का मतलब क्या है. किस तरह का विकास होना है और किसका विकास होना है. आज सरकार की नजर में विकास का जो पैमाना है, जिसे मेनस्ट्रीम सोसाइटी विकास मानती है, और जो विकास हो रहा है क्या कल...
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वे आदिवासियों के हितैषी नहीं- विनोद कुमार
तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...
More »वेदांता पर फैसला करेगी ग्राम-पंचायत
भुवनेश्वर: केंद्र सरकार और स्थानीय आदिवासियों के कड़े विरोध के बावजूद ओडिशा सरकार ने शुक्रवार को नियमगिरी पर्वत में बॉक्साइट के खनन के बारे में निर्णय लेने के लिए 12 ग्राम सभाओं की बैठक की तिथियों की घोषणा कर दी. 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर्वत में खनन के बारे में अंतिम निर्णय स्थानीय ग्राम सभाओं पर छोड़ दिया था और तीन महीनों के अन्दर खुदाई से प्रभावित होने वाले...
More »नाम का मनरेगा!- शिरीष खरे(तहलका )
मनरेगा योजना को हाईटेक बनाने की जिद के चलते मध्य प्रदेश में पिछले तीन महीने से इस योजना का काम लगभग ठप पड़ा है और लाखों मजदूर फिर से पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं. शिरीष खरे की रिपोर्ट. राजधानी भोपाल के सीहोर रोड पर बन रही एक गगनचुंबी इमारत के नीचे कुछ मजदूर परिवारों ने ईंटों की अस्थायी चारदीवारी बना ली है. इन्हें अंदाजा है कि वे कुछ महीनों...
More »गुजरात मॉडल में दलित- सुभाष गाताडे
जनसत्ता 5 जून, 2013: दलितों के अधिकारों की जानकारी हासिल करने के लिए सूचनाधिकार के तहत डाले गए आवेदन पर जानकारी मिलने में कितना वक्त लगता है? यों तो नियत समय में जानकारी मिल जानी चाहिए, मगर आप गुजरात जाएं तो वहां कम से कम तीन साल का वक्त जरूर लग सकता है और वह भी तब जब आप सूचना हासिल करने के लिए राज्य के सूचना आयोग के आयुक्त...
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