प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुआयामी शख्सियत के धनी हैं। आज जब वे प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर रहे हैं तो उनके शुभचिंतक-प्रशंसक और उनके निंदक-आलोचक दोनों ही अलग-अलग दृष्टिकोणों से इसकी समीक्षा कर रहे हैं। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इस एक साल में यह तो स्पष्ट कर ही दिया है कि आर्थिक सुधारों की डगर पर वह विपक्ष के रूप...
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सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश
अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...
More »बात निकली है तो दूर तलक जाएगी - भवदीप कांग
गजेंद्र सिंह की मौत का राजनीतिकरण इस पूरे प्रकरण का सबसे दु:खद पहलू था। हो सकता है उसकी आत्महत्या 'जेनुइन" हो। यह भी हो सकता है, जैसा दिल्ली पुलिस का मानना है कि उसकी आत्महत्या महज एक दुर्घटना हो, एक नाटकीय प्रसंग। लेकिन गजेंद्र की मौत इन मायनों में अपने लक्ष्य को अर्जित करने में जरूर कामयाब रही कि उसने किसानों की दुर्गति की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट...
More »याराना पूंजीवाद का खेल- धर्मेन्द्रपाल सिंह
एक ओर मामूली चोरी के आरोप में देश भर की जेलों में हजारों कैदी बरसों से सड़ रहे हैं, दूसरी तरफ जनता को अरबों रुपए का चूना लगाने वाले कॉरपोरेट जगत के सफेदपोश अपराधी छुट््टा घूम रहे हैं। खुली अर्थव्यवस्था का यह कड़वा सच जगजाहिर है। इस सच के साथ कुछ अपवाद भी जुड़े हैं। ‘सत्यम कंप्यूटर्स' के संस्थापक और उसके पूर्व प्रमुख बी रामलिंग राजू का मामला अपवाद की...
More »मुसीबतों के फंदे में उलझा किसान - संजय गुप्त
बीते बुधवार को दिल्ली में जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की किसान रैली के दौरान राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह की जिस ढंग से मौत हुई, उसने न केवल लोगों को झकझोरा, बल्कि दशकों पुरानी किसानों की समस्याओं को एक बार फिर सतह पर ला दिया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत 'आप" के अन्य बड़े नेताओं की उपस्थिति में गजेंद्र पहले एक पेड़ पर चढ़े और फिर उन्होंने अपने गले में...
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