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बच्चों की फीस के लिए पिता ने घर बेचा

सहरसा: अंगद का सपना था कि बच्चियों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करें. इस दौरान जब पैसे की दिक्कत आयी तो उन्होंने पैतृक घर भी बेच डाला. बच्चियां भी पिता की अपेक्षा पर खरा उतरीं लेकिन महंगाई के इस दौड़ में अंगद का यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. घर बेचने के बाद जो पैसे आये, उससे बेटियों का नामांकन तो कराया लेकिन अब फाइनल परीक्षा...

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27 वर्षो से नहीं हुई शिक्षकों की नियुक्ति

रांची: राज्य में संस्कृत की पढ़ाई दम तोड़ रही है. राज्य गठन के बाद राज्य में एक भी संस्कृत विद्यालय नहीं खोले गये. जो विद्यालय पहले से थे, वे भी खस्ता हालत में हैं. विद्यालय की खराब स्थिति का असर विद्यार्थियों की संख्या पर भी पड़ा है. राज्य में संस्कृत पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है. मध्यमा (संस्कृत) से परीक्षा में शामिल होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या दो...

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आदिम युग जैसी सुविधाएं, कहीं स्टोर रूम तो कहीं पेड़ के नीचे लगती है क्लास

अजमेर/जयपुर. राज्य में सरकारी स्कूलों पर खर्च बढ़ता जा रहा है, लेकिन स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा की गुणवत्ता में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। पांचवीं और आठवीं कक्षा वाले स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए कुर्सी टेबल नहीं हैं। शिक्षकों को भी कुर्सी बमुश्किल ही मिलती है। पेड़े के नीचे, बरामदे या ऊबड़-खाबड़ जमीन पर ही बैठाकर बच्चों को पढ़ाया जाता है। 5 हजार स्कूलों में टॉयलट...

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मुद्दा शिक्षकों को जिम्मेदार बनाने का भी है- मुकुल श्रीवास्तव

निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व के सभी शीर्ष नेताओं ने इसे सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों का हिस्सा बनाया और वर्ष 2015 तक हर बच्चे को प्राइमरी शिक्षा मुहैया कराने का निर्णय लिया। भारत के लिए आज की तारीख में इस लक्ष्य की प्राप्ति सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद असंभव दिखती है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश...

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हाशिए पर भारतीय भाषाएं- अंजुम शर्मा

जनसत्ता 29 जुलाई, 2014 : लोकतंत्र में अगर तंत्र की भाषा लोक से भिन्न हो जाए तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा सूचक नहीं है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में भाषाई आधार पर भेदभाव के जो आरोप सामने आ रहे हैं उनसे अंगरेजी मानसिकता की वर्चस्ववादी नीति और भारतीय भाषाओं की दुर्दशा पर एक बार फिर विचार करने की जरूरत पैदा हुई है।...

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