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धरोहर से भी ज्यादा हैं नदियां -- वीरेंद्र कुमार पैन्यूली

राज्य अपने-अपने क्षेत्र में बहती नदियों को अपने स्वामित्व की सरकारी संपत्ति मानते रहे हैं। कई मामलों में राज्यों की जनता भी वैसी ही समझ रखती है। ऐसी संपत्ति जिसको वे तिजोरी में बंद कर सकते हैं और उसमें दूसरों की हिस्सेदारी वे ही तय करेंगे। बांधों और नहरों पर पहरे लगने और उनके लिए जंग होने की खबरें अब कोई नई बात नहीं हैं। कावेरी नदी के जल पर...

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एक सदी पुराने विवाद का निपटारा-- एम श्रीनिवासन

कावेरी जल बंटवारे को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में 125 से भी अधिक वर्षों से विवाद चला आ रहा है। पिछले हफ्ते आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ अब यह झगड़ा खत्म होने के करीब दिख रहा है। लेकिन क्या यह हल स्थाई होगा? क्या यह फैसला देश के अन्य नदी जल विवादों में भी नजीर बनेगा? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आंशिक रूप से ही इन सवालों के जवाब...

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केपटाउन कहीं भी दस्तक दे सकता है -- अनिल प्रकाश जोशी

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन की जल त्रासदी चौंकाने से ज्यादा डराने वाली है। यह दुनिया के बेहतरीन शहरों में से एक माना जाता है और हमेशा अपनी खूबसूरती के लिए चर्चा में रहा है। लेकिन आज केपटाउन दूसरी वजह से सुर्खियों में है। यहां पानी का संकट अपने चरम पर पहुंच चुका है। पिछले एक दशक से वैसे भी यह शहर पानी की किल्लत से गुजर ही रहा था और...

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बांध, पर्यावरण और जनजीवन-- मणीन्द्र नाथ ठाकुर

महानंदा नदी को क्या कोसी नदी की तरह ही बिहार या सीमांचल का अभिशाप कहा जा सकता है? यह सवाल उठा रहे हैं कटिहार जिला के कदवा प्रखंड में जमा हुए हजारों लोग. देश में राजनीति के बदले माहौल में भी यदि यह संभव हो सका कि आस-पास के कई विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान और भूतपूर्व विधायक अपनी पार्टियों की पहचान से ऊपर उठकर एक मंच पर आ सकें और...

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शहरीकरण के बढ़ते खतरे--- देवेंद्र जोशी

अनियोजित शहरीकरण आज किसी एक प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है। आजादी के सत्तर सालों में जहां कस्बे शहर, शहर नगर और नगर महानगर बनते चले गए, वहीं गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। गांव आज भी गांव ही है। वही आबोहवा, आंचलिक संस्कृति, एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा बंटाने का आत्मीय भाव, अभाव में भी संतुष्टि और इस सबसे बढ़ कर छोटी-सी घटना...

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