SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 1163

साझा चूल्हे पर बनेगा पूरे गांव का खाना

अजमेर. मौजूदा दौर में आजकल जहां कई घरों में एक से अधिक चूल्हे जल रहे हैं वहीं पेट्रोलियम मंत्रालय की योजना सफल रही तो अजमेर,भीलवाड़ा व नागौर जिले में जल्दी ही पूरे गांव का खाना एक साझा चूल्हे पर बनता नजर आएगा। गांवों में चूल्हे पर खाना बनाने के लिए लकड़ी के अत्यधिक उपयोग से वनों की धड़ाधड़ कटाई तथा बिगड़ते पर्यावरण पर अंकुश के मद्देनजर केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय गांवों में जल्दी ही कम्यूनिटी किचन (साझा...

More »

वरदान या अभिशाप- बहस बीटी बैंगन की

ट्वीटर जैसे सोशल नेटवर्क पर अब बहस बैंगन पर आ टिकी हैं और ग्रीन पीस इंडिया जैसे संगठन ने आनुवांशिक रुप से परिवर्धित फसलों के खिलाफ जनमत बनाने के लिए सचमुच दुनिया का सबसे नायाब बैंगन का भर्ता बनाने की ठान ली है।बीटी बैंगन के खिलाफ बहस की आंच तेज हो रही है और बैंगन का सवाल अचानक आनुवांशिक रुप से परिशोधित फसलों की जमीन तैयार करने या फिर उनकी...

More »

आदिवासियों का विश्वस्तर पर जनसंहार- यूएन रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र संघ की द स्टेट ऑव द वर्ल्डस् इंडीजीनस पीपल्स नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि मूलवंशी और आदिम जनजातियां पूरे विश्व में अपनी संपदा-संसाधन और जमीन से वंचित और विस्थापित होकर विलुप्त होने के कगार पर हैं। रिपोर्ट में भारत के एक सूबे झारखंड में चल रहे खनन कार्य के कारण विस्थापित हुए संथाल जनजाति के हजारो परिवारों का हवाला देते हुए कहा गया है कि उन्हें समुचित मुआवजा तक हासिल नहीं हो...

More »

विकसित देशों कम है देश में कृषि रसायनों की खपत

हिसार, जागरण संवाददाता हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों के मुताबिक देश में हालाकि विकसित देशों के मुकाबले कीटनाशक रसायनों की कृषि में खपत बहुत कम है फिर भी कृषि उत्पादों तथा पर्यावरण में इन हानिकारक रसायनों के अवशेष मिलना आम बात है जोकि मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। खाद्य पदार्थो तथा पर्यावरण में कीटनाशक रसायनों के निर्धारित सुरक्षित मात्रा से अधिक अवशेष पाए जाने पर उन्होंने चिंता व्यक्त की है। विश्वविद्यालय के...

More »

हमारी नादानी से नदारद न हो जाएं नदियां

इसे अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परंपरा, हमारे यहा मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहा तक कुंभ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं। आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नानकर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वे उस नदी के जीवन के बारे में कभी भी नहीं सोचते।...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close