जनसत्ता 21 जुलाई, 2014 : आजादी के बाद हमने वयस्क मताधिकार पर आधारित भारतीय गणराज्य की स्थापना की। मूल अवधारणा यह रही कि हम एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे जिसके केंद्र में रहेगा देश का नागरिक। विधायिका उसके हित में कानून बनाएगी, कार्यपालिका उन कानूनों के दायरे में नागरिकों को एक विधि-सम्मत सुशासन मुहैया कराएगी, सेना बाह्य दुश्मनों से देश की सुरक्षा की गारंटी करेगी, पुलिस नागरिकों के जान-माल की रक्षा करेगी।...
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बजट के पीछे की राजनीति- नीलोत्पल बसु
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आम बजट पेश करके देश के सामने विकास का रोडमैप रखा है. इस बजट पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और विशेषज्ञ क्या सोचते हैं. ‘बजट के पीछे की राजनीति' पर ‘प्रभात खबर' एक सीरीज शुरू कर रहा है. इसी सीरीज में आज पढ़ें पहली कड़ी. एनडीए सरकार द्वारा पेश आम बजट और रेल बजट आम लोगों के लिए निराश करने वाला रहा. आम बजट...
More »नया कारोबार है ''कंपनियों की कर्ज़ माफ़ी''- पी साईनाथ
भारत में कंपनियों को दी जाने वाली टैक्स की छूट और क़र्ज़ की माफ़ी हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं. केंद्र सरकार 2006-07 से हर साल बजट में इस बात का ज़िक्र करती है कि उसने कंपनियों को टैक्स में कितनी छूट दी और आयकर दाताओं को कितनी छूट मिली. मशहूर लेखक और वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ का कहना है कि सरकार ने पिछले नौ सालों में कंपनियों को 365 खरब...
More »गरीबी और प्रधानमंत्री मोदी- विकास नारायण राय
जनसत्ता 30 मई, 2014 : भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने की औपचारिकता के बाद मोदी ने संसद के केंद्रीय हाल से संबोधन में अपनी सरकार को गरीबों, युवाओं और स्त्रियों को समर्पित करार दिया। कॉरपोरेट जगत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते ‘चायवाले’ के लिए इस दिखावे को अधिक दिनों तक निभाना टेढ़ी खीर ही होगी। गरीबों को लेकर मोदी का नवउदारवादी ट्रैक रिकार्ड सर्वाधिक संदेहास्पद रहा है।...
More »विकास के मॉडल का सवाल- के पी सिंह
जनसत्ता 22 मई, 2014 : चुनाव प्रचार के दौरान विकास के बहुतेरे मॉडल विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की ओर से प्रस्तुत किए गए। इससे पहले के चुनावों में भी विकास का कोई न कोई खाका पेश करके राजनीतिक दल मतदाताओं का विश्वास हासिल करते रहे हैं। इसके बावजूद ग्रामीण और दुर्गम पहाड़ी अंचलों में अधिकतर नागरिक आज भी स्वच्छ पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे...
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