नीतिगत रेपो दर में वृद्धि के दो चक्रों के बाद, रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इस बार एक विराम-सा लेकर उसके द्वारा बैंकों को दिये जानेवाले अल्प अवधि के ऋणों हेतु उनसे लिये जानेवाले ब्याज दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित ही छोड़ दिया. ज्ञातव्य है कि इस दर में होनेवाला कोई बदलाव एक अरसे बाद अंततः बैंक से ऋण लेनेवालों को लगनेवाली ब्याज दर में...
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एक अध्यापक जो समाज के लिए था- विभूति नारायण राय
महात्मा गांधी को याद करते हुए आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली नस्लों को यह विश्वास ही नहीं होगा कि उनके जैसा हाड़-मांस का कोई पुतला भी पृथ्वी नामक ग्रह पर कभी रहा होगा। महामानव का असाधारण होना बहुत अस्वाभाविक नहीं है, वे तो महामानव बनते ही अपने भीतर-बाहर की असाधारणता के कारण हैं। कई बार हमारा साबका किसी ऐसे साधारण मनुष्य से पड़ता है, जो अपने भीतर मनुष्य...
More »संविदा कृषि व सरकार की भूमिका-- स्मृति शर्मा
यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनके उत्पादों की बेहतर कीमत मिले और कटनी-दौनी के बाद होनेवाले नुकसानों में कमी हो, सरकार किसानाें को कृषि उद्योगों से जोड़ने का प्रयास करती रही है. संविदा कृषि इसी दिशा में एक अच्छा कदम है. संविदा कृषि (काॅन्टैक्ट फार्मिंग) का आशय किसान तथा प्रसंस्करण या विपणन कंपनियों के बीच अग्रवर्ती व्यवस्था के तहत प्रायः पहले से तय कीमतों पर कृषि उत्पादों...
More »मंदी के सबक और भविष्य के अंदेशे-- मोंटेक सिंह अहलूवालिया
लेहमन ब्रदर्स के पतन की 10वीं वर्षगांठ पर उम्मीद के मुताबिक विचारों की बाढ़ दिखी है। गुणा-भाग इन सवालों पर हो रहे हैं कि इस संकट की वजह क्या थी? क्या बेहतर तरीके से इससे निपटा गया, और हमने इससे किस तरह के सबक सीखे? ज्यादातर लेखों की बुनियाद समान है, सिवाय एक को छोड़कर, जो पूरी तरह मूल विचार लग रहा है। इसे पेश किया है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष...
More »फायदे और नुकसान का गोरखधंधा-- आशुतोष चतुर्वेदी
हम भारतीयों की एक दिक्कत है कि हम अपने सदियों पुराने ज्ञान पर भरोसा करने के बजाय पश्चिम के लोगों की बातों पर अधिक यकीन करते हैं. पश्चिम ने फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल शुरू किया, तो हमने अपनी जैविक खाद का तिरस्कार कर उसे अपना लिया. जल्द ही पश्चिमी देशों को रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से सेहत पर खतरा नजर आने लगा. इनके अंधाधुंध...
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