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‘मन की बात’ करने वाले ‘मनरेगा’ की बात क्यों करने लगे?

-न्यूजलॉन्ड्री, बात मनरेगा के बहाने सामाजिक सुरक्षा की, आखिर क्यों पूरी दुनिया में धुर पूंजीवाद की वकालत करने वाले शासक भी संकट के समय साम्यवादी हो जाते हैं. 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज के तहत एक बड़ा हिस्सा (40,000 करोड़ रुपए) वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने मनरेगा योजना में खर्च करने की घोषणा की है. यह हिस्सा केद्रीय बजट में घोषित मनरेगा फंड के अतिरिक्त होगा. खुद को बड़े गर्व से सोशली...

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एक्सक्लुसिव इंटरव्यू: “पढ़ाई पटरी पर लाने के दिशानिर्देश जल्द” -रमेश पोखरियाल निशंक

-आउटलुक,  अचानक आई कोविड महामारी ने स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकार तक, किसी को संभलने का मौका नहीं दिया। जिस समय संकट आया, उसी वक्त स्कूलों और कॉलेजों की परीक्षाओं के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं होती हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि छात्रों की पढ़ाई और साल बर्बाद न हो। छात्रों की परेशानियां दूर करने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है, राज्यों...

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रंजन गोगोई इंटरव्यू: फैसले के बदले मुझे कुछ लेना ही होता तो महज....

-इंडिया टूडे, देश के प्रधान न्यायाधीश के पद से रिटायर होने के महज चार महीने बाद ही राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत राज्यसभा सदस्यता की 19 मार्च को शपथ लेकर रंजन गोगोई ने अच्छा-खासा विवाद खड़ा कर दिया. विपक्षी नेताओं और कई न्यायविदों ने नैतिकता का सवाल उठाकर आरोप लगाया कि यह पद पर रहते हुए मोदी सरकार के पक्ष में दिए गए कई फैसलों के बदले गोगोई को सीधे-सीधे पुरस्कृत...

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हाल-फिलहाल में जारी हुई अधिकांश रिपोर्टें बता रही हैं कि अर्थव्यवस्था का पहिया थमने वाला है!

अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, आधिकारिक एजेंसियों और निजी संस्थाओं द्वारा जारी की गईं अधिकांश रिपोर्टें और अध्ययन कोरोनवायरस महामारी से अर्थव्यवस्था और समाज पर पड़ने वाले प्रलयकारी प्रभावों की तरफ इशारा करते हैं. उनका अनुमान है कि दुनिया भर के विभिन्न देशों द्वारा COVID -19 (यानी सोशल डिस्टेंसिंग और क्वॉरंटीन) को कम करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित आर्थिक विकास को प्रभावित करेंगे और अधिकांश क्षेत्रों में...

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महामारी के बाद निवेश का पहिया, राजस्व की चरखी और रोजगारों की मशीन कैसे चलेगी

-इंडिया टूडे, ताली-थाली और दीया-मोमबत्ती से होते हुए कोविड लॉकडाउन का तीसरा सप्ताह आने तक केंद्र सरकार थकने-सी लगी थी. यही मौका था जब भारतीय संविधानसभा की वह जद्दोजेहद कारगर नजर आने लगी, जिसके तहत राज्यों को पर्याप्त शक्तियों से लैस किया गया था. आजादी के बाद सबसे बडे़ संकट में भारत के राज्य अमेरिका की तरह वहां के राष्ट्रपति का सिरदर्द नहीं बने थे बल्कि संघीय ढांचे की ताकत के...

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