बस दो हफ्तों की बात और है, इसके बाद केंद्र में एक नई सरकार होगी, जिसे बेकाबू भ्रष्टाचार, धीमी विकास दर, बेरोजगारी, आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दामों और गहरी जड़ें जमा चुकी दोषपूर्ण मान्यताओं से उपजी राजनीतिक व्यवस्था जैसी विकराल चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। चुनावी सरगर्मियों पर नजर डालने से साफ पता चलता है कि ऐसे तीन मुद्दे हैं, जो औसत मतदाता की परेशानियों का सबब बनते हैं। इनमें सबसे...
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मध्य वर्ग का बहुत कुछ दांव पर- लीला फर्नांडिज
भारत का मध्यवर्ग लोकसभा चुनाव के केंद्र में है। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने ‘नव मध्यवर्ग’ के तौर पर एक नई राजनीतिक पहचान देकर सुनियोजित ढंग से शहरी मध्यवर्ग को लुभाने की कोशिश की है। इस नई पहचान ने मध्यवर्ग की आकांक्षाओं को नए पंख दिए हैं। कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार से मध्यवर्ग को मिली मायूसी के कारण भाजपा की यह रणनीति काम करती दिख रही है। असमान आर्थिक विकास, बढ़ती...
More »शिक्षा की परीक्षा में जवाबदेही का सवाल- अनुराग बेहर
आम सोच यह है कि स्कूल व शिक्षक जवाबदेह नहीं हैं, इसलिए स्कूली शिक्षा की हालत खराब है। लेकिन यह मसला इतना परेशान करने वाला क्यों है? आइए, बात को ‘जवाबदेही’ शब्द से ही शुरू करें और इसके इस्तेमाल को समझों। आज इस शब्द का सबसे अधिक इस्तेमाल कारोबारी दुनिया में होता है। इस तरह की सोच यांत्रिक प्रणालियों का नतीजा है, वहां पर लोगों को किसी चीज की जिम्मेदारी...
More »विकास में केंद्रीय सहायता जरूरी- सतीशचंद्र झा
राज्य का विकास कैसे हो, यह वहां की सरकार की प्रतिबद्धता से जुड़ा होता है. बिहार विकास के मामले में देश के अन्य राज्यों से पीछे है. लेकिन पिछले कुछ वर्षो से इसमें बदलाव आया है. बिहार और झारखंड को विकास के लिए विशेष दरजा दिया जाना चाहिए. बिहार सरकार की यह मांग जायज भी है, क्योंकि झारखंड अलग होने के बाद बिहार में संसाधन नहीं के बराबर रह गये. इसके...
More »गुजरात मॉडल की असलियत- कृष्ण स्वरुप आनंदी
जनसत्ता 19 फरवरी, 2014 : गुजरात का विकास चर्चा का विषय बना दिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि अन्य राज्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिए भी एक बेहतरीन अनुकरणीय मॉडल गुजरात ने प्रस्तुत किया है। उस मॉडल को देशव्यापी बनाने का सपना जोर-शोर से लोगों को दिखाया जा रहा है। विकास, सुशासन, समृद्धि, रोजगार सृजन जैसे शब्द तेजी से हवा में उछाले...
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