नवउदारवाद के निजामों ने पिछले ढाई दशकों के दौरान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के उदारवादी मूल्यों को चुनौती दी। बाजार के हाहाकार में सामंती मूल्यों को ही स्थापित करने की कोशिश की गई। स्त्रियों, दलितों सहित अन्य दमित वर्गों को समझाया गया कि बाजार सारी गैरबराबरी मिटा देगा। गुजरात का विकास मॉडल अभी बाजार में भुनाया ही जा रहा था कि कलक्टर साहब के दफ्तर के आगे और सड़कों पर...
More »SEARCH RESULT
तो लड़कियां मौत नहीं चुनतीं-- निवेदिता
एक 18 साल की लड़की ने दुनिया को अभी जानना शुरू किया होगा. उसने अपनी हमउम्र लड़कियों की तरह ख्वाब बुने होंगे. वह तारों से बातें करती होगी और उसके पहलू में चांद रहा होगा. लेकिन, उसने बिजली का नंगा तार पकड़ कर अपनी जान दे दी. उसने यह भयानक कदम इसलिए उठाया, क्योंकि उस पर दो साल पहले तेजाब से हमला हुआ था, जिसमें उसका चेहरा झुलस गया था....
More »कभी अबरख से चमकता था, अब ढीबरा तले दबा कोडरमा-- जीवेश
कोडरमा शहर व मुख्य पथ से महज छह किलोमीटर हट कर है छतरबर का इलाका. इस घनी बस्ती से सट कर शुरू होता है जंगली क्षेत्र. झाड़ियोंवाले इस जंगल में थोड़ी दूर जाने पर ही सड़क के किनारे सुरंगें दिखनी शुरू हो जाती हैं. इन सुरंगों से जमीन के अंदर घुस ढीबरा (अबरख का स्क्रैप) चुनते हैं गांववाले. झाड़ियों के बीच स्थित पगडंडी पर तीर का लाल (रात में...
More »प्रदूषण से दिल्ली में घटते हैं आपकी जिंदगी के 6 साल
नई दिल्ली। वायु प्रदूषण का हमारी जिंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा है। ताजा खुलासा तो और भी चौंकाने वाला है कि इससे हमारी जिंदगी के छह साल भी कम हो रहे हैं। दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और पूरे देश में होने वाली कुल मौतों का यह पांचवां बड़ा कारक है। अध्ययन...
More »जीवन-मरण का वैश्विक प्रश्न--- निरंकार सिंह
जब ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा शुरू हुई थी, तब इस प्रकार के आकलन की वैज्ञानिकता पर काफी सवाल उठाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे वे सवाल खामोश होते गए। अब पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने तथा इसके फलस्वरूप जलवायु संकट तीव्रतर होने की हकीकत पर मतभेद की गुंजाइश नहीं रह गई है। दुनिया भर के वैज्ञानिक अब यह अनुभव करने लगे हैं कि हम आधुनिक विकास के जिस रास्ते पर चल...
More »