जनसत्ता 1 फरवरी, 2013: गणतंत्र दिवस की सुबह। जयपुर साहित्य उत्सव के उस सत्र का शीर्षक था ‘विचारों का गणतंत्र’। आशीष नंदी ने पहले उदाहरण देकर विस्तार से समझाया कि क्यों एक सवर्ण अभिजात का भ्रष्टाचार हमारी बनाई ‘भ्रष्टाचार’ की मानक परिभाषाओं में फिट नहीं होता और क्यों सिर्फ दलित का भ्रष्टाचार नजर आता है। इसलिए जब उन्होंने यह कहा कि भ्रष्टाचारियों का बहुमत वंचित जातियों से आता है तो उन्होंने अपनी...
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प्रतिरोध का कारवां- भारत डोगरा
जनसत्ता 7 नवंबर, 2012: यूपीए सरकार ने जिस तरह खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश को आगे बढ़ाने की जिद पकड़ी है उसकी ठीक ही व्यापक आलोचना हुई है। कोई ठोस प्रमाण दिए बिना ही सरकार ने कह दिया कि इससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा, जबकि हकीकत इसके विपरीत है। कुछ समय के लिए खुदरा में बहुराष्टÑीय कंपनियों का प्रवेश जरूर चकाचौंध उत्पन्न कर सकता है, पर शीघ्र ही यह स्पष्ट...
More »"छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश का मॉडल बेहतर"- आरपी सिंह
झारखंड के राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) के निदेशक राम प्रताप सिंह (आरपी सिंह) अपनी जिम्मेवारियों के प्रति संवेदनशील व समय के पाबंद हैं. गांव के विकास से जुड़े हर बिंदु पर वे मौलिक राय रखते हैं और इसे साझा भी करते हैं. तीन दशकों बाद जब झारखंड में पंचायत राज निकाय का गठन हुआ, तो उसे गति देने के लिए क्षमतावान अधिकारियों की जरूरत महसूस की गयी. ऐसे में...
More »धनी देशों की कमजोर इच्छाशक्ति से निराशा
रियो-डी जिनेरियोः भारत ने गुरुवार को कहा कि हरित अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों के कार्यान्यवन के लिए विकासशील देशों को बढ़े साधन मुहैया कराने में विकसित देशों की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति से वह निराश है. यदि इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक तरीके से लागू नहीं किया गया, तो वह आंखों में धूल झोंकने के बराबर होगा. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित करीब 100 विश्व नेता यहां रियो+ 20 पर्यावरण शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे...
More »हिंसक प्रतिरोध कितना उचित- हर्षमंदर
बहुतेरी संस्कृतियों में अन्याय के प्रतिरोध को सर्वोच्च मानवीय दायित्व का दर्जा दिया गया है। इसी क्रम में एक बहस सदियों से जारी है और आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह है अत्याचार और अन्याय के प्रतिरोध में हिंसा की वैधता। सवाल यह है कि अगर राज्यसत्ता के कुछ सशक्त प्रतिनिधि अगर अन्यायपूर्ण हो गए हों तो क्या उनके प्रतिरोध के लिए हिंसा उचित है? दूसरे शब्दों में क्या न्याय के...
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