बात लगभग तीन साल पहले की है। न्यूयॉर्क में अमेरिका के लेफ्ट फोरम यानी वाम मंच ने तीन दिन का एक सम्मेलन किया। इसमें दुनिया भर के कई कार्यकर्ता जमा हुए। तमाम विश्वविद्यालयों के कई नामी-गिरामी प्रोफेसर वहां आए। अपनी सोच से दुनिया की एकमात्र वास्तविक व्याख्या का दावा करने वाले ‘फ्री थिंकर' भी वहां भारी संख्या में थे। गायक, कलाकार, रंगमंच के निर्देशक, अभिनेता, कुल मिलाकर बौद्धिक जगत की...
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न्याय की वेदी पर खंड-खंड पाखंड - भवदीप कांग
अपने आश्रम में एक नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आसाराम को जोधपुर कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी है। यह वही आसाराम है, जिसका कभी बड़ा रसूख हुआ करता था। अपने इसी रसूख के दम पर उसने एक बार यहां तक कि गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार को गिराने की धमकी भी दे डाली थी। यूं देखा जाए तो राजनीतिक प्रश्रय की वजह से ही कथावाचक आसाराम के...
More »चंपारण से निकला रास्ता- राजू पांडेय
चंपारण सत्याग्रह नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष के रूप में विख्यात है। इसके एक सदी बाद भी देश का किसान बदहाल है। 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 67.04 प्रतिशत किसान परिवार सीमांत हैं जबकि 17.93 प्रतिशत कृषक परिवार लघु की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने संसद को राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जुलाई 2012 से जून 2013 के संदर्भ में संकलित...
More »भेदभाव के शिकार बिहार जैसे राज्य-- डा. शैबाल गुप्ता
केरल के वित्त मंत्री डॉ टीएम थॉमस इसाक ने 10 अप्रैल, 2018 को दक्षिण भारत (तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल) के सभी वित्त मंत्रियों की बैठक बुलायी है. बैठक 15वें वित्त आयोग के टर्म ऑफ रेफरेंस (टीओआर) के संबंध में केंद्र सरकार के पास सामूहिक राय पेश करने के लिए बुलायी गयी है. क्योंकि, इस वित्त आयोग में संसाधनों के वितरण के लिए 2011 की जनगणना को आधार...
More »जाति के जाल से कर्नाटक भी नहीं बचा-- एस श्रीनिवासन
अब जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में चंद हफ्ते रह गए हैं, तो राज्य में चुनावी गहमागहमी चरम की ओर बढ़ चली है। हालांकि कर्नाटक की आर्थिक स्थिति कई अन्य सूबों के मुकाबले बेहतर है, फिर भी इसकी अपनी कुछ समस्याएं तो हैं ही। राज्य में खेती-किसानी काफी दबाव में है। इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2012 से 2017 के बीच वहां 3,500 से अधिक किसानों...
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