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कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए 'वर्क फ्रॉम होम' जैसे उपाय भारतीय श्रमिकों के लिए नहीं हैं मददगार

साल 2020 से पर्दा उठते ही इसके शुरुआती जनवरी महीने में चीन जैसी महाशक्ति को COVID-19 के व्यापक प्रकोप से झूझते हुए पाया, जोकि कुछ दिनों के भीतर ही वैश्विक स्तर पर फैल गया. COVID-19 की तीव्र प्रसार क्षमता के अध्ययन के बाद, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बाकी की आबादी के बीच तेजी से इसके प्रसार को रोकने के लिए कुछ तरीके सुझाए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इंटरनेट कनेक्टिविटी के युग...

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कोरोना वायरस के मरीजों का आंकड़ा 110 हुआ, प्रधानमंत्री की सार्क देशों के नेताओं के साथ बैठक

-सत्याग्रह कोरोना वायरस के मरीजों वाले राज्यों में अब उत्तराखंड भी शामिल हो गया है. यहां हाल ही में स्पेन से लौटा भारतीय विदेश सेवा का एक अधिकारी इसकी चपेट में आया है. उधर, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में दो और मामलों की पुष्टि के साथ भारत में इस कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 110 हो गई है. दिल्ली और कर्नाटक में इससे दो मौतें हो चुकी हैं. दिल्ली में...

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कोरोना वायरस से भारत में पहली मौत, आंध्र प्रदेश भी पहुंची बीमारी, दिल्ली-हरियाणा में महामारी घोषित

जनज्वार, कर्नाटक के कलबुर्गी में 76 वर्षीय एक बजुर्ग की मौत हो गई है जो कोरोनावायरस से पीड़ित था. गुरुवार को अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी. बुजुर्ग की मौत मंगलवार को ही हो गई थी, लेकिन उसके कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि गुरुवार को हुई. यह व्‍यक्ति 29 फरवरी को सऊदी अरब से भारत लौटा था और हैदराबाद एयरपोर्ट पर उसकी स्‍क्रीनिंग भी हुई थी. उस वक्‍त उसमें कोरोना के...

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'दस हजार से अधिक नवजात मर गए, लेकिन अस्पताल प्रशासन के लिए यह सामान्य बात है'

-न्यूजलॉन्ड्री, गोरखपुर, मुजफ्फपुर और बाद में कोटा में सैकड़ों बच्चों की मौतें हुई, जो लगभग हर अखबार व चैनल की सुर्खियां बनी और कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो गया. नहीं बदला तो अस्पताल प्रशासन का रवैया. यह रवैया न तो उक्त तीनों अस्पताल में बदला है और ना ही देश के अन्य अस्पतालों में. हमनें जनवरी व फरवरी माह के दौरान देश के 10 राज्यों के 19 सरकारी अस्पतालों की...

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जीवन भक्षक अस्पताल-1: देश के अस्पतालों में हर एक मिनट पर एक नवजात शिशु की मौत

इस देश में जच्चा-बच्चा कैसे सुरक्षित रह सकते हैं, जब स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर अस्पताल तक लोगों को समय से उपचार नहीं मिल रहा। संस्थागत प्रसव के बाद एक भी बच्चे की मौत तक व्यवस्था पर सवाल जिंदा बना रहेगा। रोजाना जन्मने वाले कुल शिशुओं मे 50 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले आठ ईएजी राज्य करते हैं। यहां स्थितियां बेहद जर्जर हैं। वहीं अन्य राज्यों में भी स्थिति को संतोषजनक नहीं...

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