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भटके हुए चुनाव अभियान- सुनील खिलनानी

एक उम्मीदवार भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुखर है। वहीं दूसरा पुनर्वितरण और सशक्तिकरण की वकालत कर रहा है। एक तीसरा उम्मीदवार भी है, जो विकास की अलख जगाते हुए एक नए राष्‍ट्रीय गौरव का आह्वान कर रहा है, जिसमें हिंदुओं को पीड़ित बताए जाने की मंशा अंतर्निहित है। लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे ये तीनों संभावित नेता देश की बागडोर संभालने की मंशा तो रखते हैं, लेकिन इस जरूरी तथ्य...

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संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत

देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी...

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किशोर शब्द की नये सिरे से व्याख्या के लिये सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय कानून में किशोर शब्द की नये सिरे से व्याख्या के लिये दायर याचिकाओं पर मंगलवार को अंतिम सुनवाई शुरु कर दी. इन याचिकाओं में अनुरोध किया गया है कि जघन्य अपराध में लिप्त किशोर की स्थिति का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड पर छोड़ने की बजाये इसे फौजदारी अदालतों पर छोड़ा जाये. ये याचिकायें भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी और 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार...

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हर सवाल स्त्री से ही क्यों- क्षमा शर्मा

बीरभूम में एक बीस साल की लड़की के साथ जिस तरह का व्यवहार पंचायत के मुखिया के आदेश पर किया गया, वह कितना अशोभनीय और अकल्पनीय है। स्त्रीवादी सोच अक्सर कहती है कि उच्च पदों पर बैठी औरतें, औरतों की तकदीर बदल सकती हैं। बंगाल में महिला मुख्यमंत्री ही हैं। लेकिन बंगाल में बलात्कार की ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिस पर वहां की मुख्यमंत्री ने चुप्पी साध ली। दरअसल महिला-पुरुष...

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राजनीति का सूचकांक क्यों नहीं- अनिल जोशी

वर्तमान राजनीति में सभी असहाय-से लगते हैं। सबसे पीड़ित तो जनता ही है, जिसकी हर बार चुनाव में फेरबदल करने की कोशिश लगभग बेकार-सी हो जाती है, क्योंकि वही ढाक के तीन पात। राजनेता भी खुश-खुश से नहीं दिखते, क्योंकि अब चुनाव के बाद जो भी जनादेश आता है, वह आधा-अधूरा सा रहता है। फिर जोड़-तोड़ का नया खेल शुरू हो जाता है। मगर बात सत्ता की है, किसी न किसी...

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