एक तरफ खाद-उर्वरक के बढ़ते उपयोग के चलते कृषि पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, तो दूसरी तरफ तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण ने कृषि योग्य भूमि के विस्तार को सीमित कर दिया। पिछली सदी के दौरान खाद्यान्न की मांग में खासी तेजी के बावजूद खाद्यान्न की कीमत में वास्तविक अर्थों में हर वर्ष 0.7 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। खेती की उपज को लेकर देश के साथ-साथ दुनियाभर के आंकड़ों...
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इस बार के चुनाव में खेती-किसानी मुद्दा क्यों नहीं है- हरवीर सिंह
इंदिरा गांधी के इमरजेंसी राज के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस जनता पार्टी ने सत्ता से बेदखल किया, उसका चुनाव चिह्न हलधर था। उस चुनाव का एक नारा था, देश की खुशहाली का रास्ता खेतों और गांवों से होकर जाता है। साफ है कि तब राजनीति के केंद्र में किसान और गांव-देहात था। अब सोलहवीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस चुनाव में मध्यवर्ग,...
More »जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान
जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...
More »पार्टी की राजनीति ने गांव की एकता को तोड़ दिया है : राधा भट्ट
गांधी और उनके ग्राम स्वराज के सपने पर नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष और प्रसिद्ध गांधीवादी राधा भट्ट्र से पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह ने बातचीत की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश : अक्सर इस बात पर चर्चा होती है कि भारत गांवों का देश है, देश की प्रगति तभी संभव होगी जब गांवों की प्रगति होगी? लेकिन वास्तविकता के धरातल पर इस चर्चा को कितनी जगह मिल पायी...
More »बदलते वातावरण के बीच खेती-बाड़ी की चुनौतियां- नई रिपोर्ट
देश की कृषि को दुनिया की कुल कृषि-भूमि का महज 2.4 फीसदी और कुल जल-संसाधन का सिर्फ 4.0 प्रतिशत हासिल है। तो, क्या इस सीमित संसाधन के बूते भारतीय कृषि दुनिया की 17.5 फीसदी आबादी(भारतीय) का पेट भरने की चुनौती सफलतापूर्वक निभा सकेगी ? हाल के सालों में इस चुनौती ने और भी ज्यादा गंभीर रुप धारण किया है क्योंकि वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिंग) और उससे जुड़े पर्यावरणगत बदलावों के कारण देश...
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