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चर्चा में.... | बदलते वातावरण के बीच खेती-बाड़ी की चुनौतियां- नई रिपोर्ट
बदलते वातावरण के बीच खेती-बाड़ी की चुनौतियां- नई रिपोर्ट

बदलते वातावरण के बीच खेती-बाड़ी की चुनौतियां- नई रिपोर्ट

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published Published on Mar 9, 2014   modified Modified on Mar 9, 2014
देश की कृषि को दुनिया की कुल कृषि-भूमि का महज 2.4 फीसदी और कुल जल-संसाधन का सिर्फ 4.0 प्रतिशत हासिल है। तो, क्या इस सीमित संसाधन के बूते भारतीय कृषि दुनिया की 17.5 फीसदी आबादी(भारतीय) का पेट भरने की चुनौती सफलतापूर्वक निभा सकेगी ?
 
हाल के सालों में इस चुनौती ने और भी ज्यादा गंभीर रुप धारण किया है क्योंकि वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिंग) और उससे जुड़े पर्यावरणगत बदलावों के कारण देश के प्राकृतिक संसाधन का क्षरण लगातार जारी है। ऐसे परिदृश्य में नेशनल एकेडमी ऑव एग्रीकल्चरल साइंसेज की नई रिपोर्ट क्लाइमेट रेजिलेंट एग्रीक्लचर इन इंडिया का कहना है कि पर्यावरणगत बदलावों को सह सकने लायक खेती-बाड़ी की तौर-तरीके अपनाना भारतीय कृषि की बड़ी जरुरत है।(देखें नीचे दी गई लिंक)

पर्यावरणगत बदलावों को सहने में सक्षम खेती-बाड़ी के तौर-तरीके(क्लाइमेट रेजिलेंट एग्रीकल्चर अर्थात सीआरए) अपनाने का अर्थ है एक ऐसी व्यवस्था कायम करना जो अंदरुनी तौर पर पर्यावरणगत खतरों से आगाह हो और इन खतरों के मद्देनजर समाधान की जरुरी तैयारियां कर सके। सीआरए मूलतया प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण और कारगर इस्तेमाल की युक्ति है।

नेशनल एकेडमी ऑव एग्रीकल्चरल साइंसेज की नई रिपोर्ट का कहना है कि पर्यावरणगत बदलावों की वजह से फसल की मात्रा और गुणवत्ता में बदलाव होगा और इसी के अनुकूल सिंचाई के तौर-तरीके, कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल आदि में भी बदलाव होगा। मॉडलिंग स्टडीज की पद्धति अपनाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरणीय बदलावों के कारण गेहूं, चावल तथा मक्का सरीखे महत्वपूर्ण फसलों की उपज में कमी आयेगी जबकि मूंगफली और सोयाबीन सरीखी फसलों की उपज या तो अप्रभावित रहेगी या फिर उन में सकारात्मक परिवर्तन होंगे।
 
रिपोर्ट के अनुसार कुल उत्पादन और प्रति एकड़ उपज, मछली-उत्पादन और पशुधन जैसी गतिविधियां पर्यावरणीय बदलावों के कारण प्रभावित होंगी और इस वजह से भारतीय कृषि की स्थिति गंभीर होती जाएगी। मिसाल के लिए वायुमंडल में हो रहे उत्सर्जन की तमाम स्थितियों को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट का आकलन है कि चावल के उत्पादन में अगले बीस सालों में 4 फीसदी की कमी आयेगी जबकि साल 2050 तक चावल के उत्पादन में 7 प्रतिशत और 2080 तक 10 फीसदी की कमी आयेगी। रिपोर्ट के अनुसार तापमान में प्रति 1 डिग्री सेंटीग्रेड की बढ़त के साथ भारत में 40-50 लाख टन गेहूं के उत्पादन में कमी होगी। हां, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में आलू के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सकती है लेकिन किन्हीं विशिष्ट स्थितियों में पश्चिम बंगाल और दक्षिण के पठारी इलाकों में आलू का उत्पादन 4 प्रतिशत से लेकर 16 प्रतिशत तक कम हो सकता है।

समाधान के तौर पर रिपोर्ट में वैज्ञानिक ढंग की कृषि-वानिकी(एग्रोफॉरेस्ट्री) को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इससे ग्रीनहाऊस गैसों का पर्यावरणीय भार कम करने में मदद मिलेगी साथ ही किसान बदलते पर्यावरण के बीच एक सुरक्षा का ढांचा विकसित कर पायेंगे।

गौरतलब है कि भारत सरकार ने हाल ही में ऑपरेशन गाइडलाइन्स फॉर नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर नामक निर्देशिका जारी की है। इस निर्देशिका का उद्देश्य स्थानीय विशेषताओं के अनुकूल खेती-बाड़ी का विकास करते हुए उसे पर्यावरणीय बदलावों के प्रति सक्षम, कहीं ज्यादा उत्पादक, लाभपरक और टिकाऊ बनाने का है।
 

इस कथा के विस्तार के लिए कृपया देखें निम्नलिखित लिंक्स:

Climate Resilient Agriculture in India (2013), Policy Paper no. 65, National Academy of Agricultural Sciences, December,
http://naasindia.org/Policy%20Papers/Policy%2065.pdf

Operational Guidelines for National Mission for Sustainable Agriculture-NMSA (2014), Department of Agriculture & Cooperation, Ministry of Agriculture
http://agricoop.nic.in/imagedefault/whatsnew/nmsagidelines.pdf

UNICEF, FAO and SaciWATERs (2013): Water in India: Situation and Prospects, http://www.im4change.org/docs/656water-in-india-report.pdf

Wani, SP, Sreedevi TK, Rockström, J and Ramakrishna, YS (2009): 'Rainfed Agriculture-Past Trends and Future Prospects', in Wani, Suhas P, Rockström, Johan and Oweis, Theib, Rainfed Agriculture: Unlocking the Potential, Chapter 1, CABI, ICRISAT and IWMI,
http://www.iwmi.cgiar.org/Publications/CABI_Publications/C
A_CABI_Series/Rainfed_Agriculture/Protected/Rainfed_Agri
cu lture_Unlocking_the_Potential.pdf

Planning Commission (2013): Twelfth Five Year Plan documents (Volume 1, 2 and 3), http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/12thplan/we
lcome.html

Ministry of Statistics and Programme Implementation (2013): Statistics related to Climate Change-India, GoI,
http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/climate_change_29nov13.pdf

Ministry of Environment and Forests (2009): State of Environment Report 2009, http://envfor.nic.in/soer/2009/SoE%20Report_2009.pdf

Ministry of Agriculture (2013): State of Indian Agriculture 2012-13,
http://www.indiaenvironmentportal.org.in/files/file/State%
20of%20Indian%20Agriculture%202012-13.pdf

Ministry of Agriculture (2012): State of Indian Agriculture 2011-12,
http://agricoop.nic.in/SIA111213312.pdf

Ministry of Environment and Forests (2010): Elucidation of the 4th National Report submitted to UNCCD Secretariat, 2010, GoI,
http://envfor.nic.in/sites/default/files/unccd-report_0.pdf

Gray, Erin and Srinidhi, Arjuna (2013): Watershed Development in India: Economic Valuation and Adaptation Considerations, World Resources Institute, December,
http://www.wri.org/sites/default/files/wsd_in_india_0.pdf

 

चित्र साभार- www.motherearthnews.com/~/media/Images/MEN/Editorial/Articles/Magazine Articles/2011/08-01/Signs of Climate Change/Climate Change Effects.jpg


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