शामली [मुजफ्फरनगर, राजपाल पारवा], मैं हूं गांव कोठड़ा..। एक समय मेरी आबादी 500 के करीब थी। रोजगार के अभाव में दो साल पूर्व मेरा अस्तित्व समाप्त हो गया। शेष रह गया तो सिर्फ 350 वर्षो का इतिहास। ..लेकिन आज भी मेरे बरगद की शीतल छांव में मुसाफिर अपनी थकान मिटाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पीर आज भी मेरे वजूद का गवाह है। अगर नहीं हैं तो यहां के बाशिंदे। मेरठ-करनाल...
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कैसे कहें, स्कूल चलें हम?
मुजफ्फरपुर [जाटी]। शिक्षा में सुधार संबंधी तमाम प्रयासों के बावजूद उत्तर बिहार ड्राप आउट की समस्या से जूझ रहा है। हजारों बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं। हैरत की बात यह है कि जिम्मेदार अफसर इसे कबूल तो करते हैं, लेकिन उनके पास इससे निबटने की कोई प्लानिंग नहीं है। मुजफ्फरपुर में सिर्फ ड्राप आउट बच्चों की संख्या 32 हजार है। इस ग्राफ को कम करने के लिए कई...
More »कृषि, औषधि व फल आधारित कारखाने लगाएं उद्योगपति
जागरण ब्यूरो, शिमला : मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने उद्योगपतियों से कहा कि हिमाचल में ऐसे उद्योगों की स्थापना को प्राथमिकता दें जो आम आदमी के हित में हों। उन्होंने कहा कि यहां कृषि, औषधि, फल एवं अन्य स्थानीय उत्पादों पर आधारित उद्योग स्थापित करने चाहिए, ताकि प्रदेश के लोगों को उनका लाभ हो। मुख्यमंत्री भारतीय उद्योग संघ के वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर 'हिमाचल प्रदेश : ड्राइवर्स ऑफ ग्रॉथ' विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित...
More »पत्थरों की खदानों से लौटा बचपन || बिदिसा फौजदार/शिरीष खरे ||
कभी बाल मजदूरी करने वाला महेन्द्र अब बच्चों के अधिकारों से जुड़ी कई लड़ाईयों का नायक है। महेन्द्र के कामों से जाहिर होता है कि छोटी सी उम्र में मिला एक छोटा सा मौका भी किसी बच्चे की जिंदगी को किस हद तक बदल सकता है। महेन्द्र रजक, इलाहाबाद जिले के गीन्ज गांव से है- जहां की भंयकर गरीबी अक्सर ऐसे बच्चों को पत्थरों की खदानों की तरफ धकेलती है। महेन्द्र...
More »पुरखों की जमीन दी, बदले में क्या मिला.. !!
राउरकेला स्टील प्लांट की स्थापना के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू और जयपाल सिंह मुण्डा आए थे और गांव वालों को समझा बुझा कर विकास के नाम पर जमीन ले लिया था. आज पचास सालों के बाद विस्थापितों के हालात भिखमंगों की तरह हो गई है. उन्ही विस्थापितों में से एक हैं लुसिया तिर्की जो मंदिरा डैम से उजाड़ दी गई. उनका कहना है कि जमीन का कागज अभी तक...
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