-द प्रिंट, देश के मजदूरों की वर्तमान पीढ़ी को शायद ही मालूम हो कि इसमें हर एक मई को मजदूर दिवस मनाने की परम्परा 1923 में इसी दिन गठित लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने मद्रास (अब चेन्नई) में शुरू की थी, जिसका उद्देश्य दुनियाभर के मजदूरों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करना था. तब से अब तक शायद ही कभी ऐसा वक्त आया हो, जब मजदूर दिवस पर मजदूर इतनी विपरीत...
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संकटों को अवसर बना लेने वाले मुल्क अपनी अगली पीढ़ियों को एक तपी-निखरी दुनिया सौंपते हैं
-इंडिया टूडे, बीसवीं सदी की महामंदी, 1991 के भारतीय आर्थिक संकट और 2008 की ग्लोबल बैंकिंग आपदा का इतिहास हमें कुरेद-कुरेद कर बताता है कि अंतत: वही जीतते हैं जो एक अच्छी आपदा को बर्बाद नहीं करते. संकटों को अवसर बना लेने वाले मुल्क अपनी अगली पीढि़यों को एक तपी-निखरी दुनिया सौंपते हैं. बड़े बदलाव के लिए किसी बड़े संकट का इंतजार था तो मुराद अब पूरी हो गई है. संकट में...
More »योगीराज के तीन सालः आंकड़ों के आईने में एनकाउंटर, मर्डर, रेप, बेरोजगारी और बवाल…
-मीडियाविजिल, योगी आदित्यनाथ की गिनवायी उपलब्धियों की मीडियाविजिल ने सरकारी आंकड़ों के सहारे पड़ताल की है. यह पड़ताल समाज के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी है. जो आंकड़े सामने आये हैं, वे दिल दहलाने वाली तस्वीर पेश करते हैं. मीडियाविजिल एक-एक कर के अलग-अलग क्षेत्रों की ज़मीनी हक़ीकत पाठकों के सामने रख रहा है. रोजगार पिछले विधानसभा चुनाव के मौके पर भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं के लिए 70 लाख नौकरियों का वादा किया था....
More »जंग के मैदान में नहीं, वतन के सजदे में हैं शाहीन बाग़ की औरतें
ये बात है गुजरे साल 30 दिसंबर की. कहते हैं वो इन सर्दियों का सबसे सर्द दिन था. शहर दिल्ली में 119 साल बाद इतनी ठंड पड़ी थी कि पारा लुढ़ककर 2 डिग्री को जा पहुंचा था. दक्षिण दिल्ली में यमुना नदी के किनारे बसे मोहल्ले शाहीन बाग में औरतों के धरने का वो 17वां दिन था. सैकड़ों की तादाद में औरतें सीएए और एनआरसी के खिलाफ रीढ़ को कंपा...
More »केंद्र सरकार के बजट में 29 बजटों का सवाल
-इंडिया टूडे हिंदी केंद्र सरकार का अकेला बजट मंदी का भाड़ फोड़ सकता होता तो फिर छह ‘शानदार’ बजटों के बावजूद हम औंधे मुंह धंस न गए होते. अथवा टैक्स या कर्ज रियायतों के ताजे पैकेज (ऑटोमोबाइल, हाउसिंग, कॉर्पोरेट के टैक्स में कमी, एनबीएफसी, लघु उद्योग) सिर के बल खड़े न हो जाते. 2020-21 का बजट कुछ ऐसी वजहों से संवेदनशील होने वाला है जो अर्थव्यवस्था और सियासत, दोनों के लिए कीमती...
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