अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...
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थम क्यों जाते हैं बेटियों के कदम- ऋतु सारस्वत
हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली समेत सभी केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बहाली में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी है। निश्चय ही, यह कदम देश की आधी आबादी के ‘सशक्तीकरण' में महती भूमिका निभाएगा। गौरतलब है कि भारतीय पुलिस सेवा में महिलाओं की संख्या पिछले वर्ष ही एक लाख को पार कर गई थी। हालांकि सच यह भी है कि कुल पुलिस बल में...
More »आदिवासियों, किसानों की जमीन बचाने से हो शुरुआत- सच्चिदानंद सिन्हा
बुजुर्ग समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा के लेख व भाषण हम समय-समय पर छापते रहते हैं, जिनमें वह बार-बार चिह्न्ति करते हैं कि पर्यावरण और प्रकृति के विनाश के लिए अगर कोई जिम्मेदार है, तो वो है औद्योगीकरण और उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था. और अगर इनसान नहीं चेता, तो इसी की वजह एक दिन वह खुद भी नष्ट हो जायेगा. एक और क्षेत्र उनकी चिंता में स्थायी रूप से रहता है कि अब...
More »कैसे आत्मनिर्भर होंगे ऊर्जा क्षेत्र में- अनुराग दीक्षित
ऊर्जा की उपलब्धता किसी भी मुल्क के विकास के लिए अहम है, लेकिन संसाधनों के सीमित होने के कारण ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल पूरी दुनिया में आज एक बड़ी चुनौती है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में तो यह मामला कहीं ज्यादा गंभीर है। अनुमान है कि वर्ष 2035 तक ऊर्जा की मांग के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश होगा! इन्हीं बातों को ध्यान में...
More »लेनदेन में ओबामा ने मारी बाजी - नंटू बनर्जी
वे आए, उन्होंने देखा, और उन्होंने तकरीबन सबकुछ जीत लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस बार अपने मन में एक सुनिश्चित लक्ष्य लेकर आए थे और वे उसे पूरा करने में कामयाब रहे। वे अमेरिका के परमाणु संयंत्र और उपकरण प्रदाताओं को परमाणु उत्तरदायित्व से मुक्त कराना चाहते थे, वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाने के लिए भारत को अपना सामरिक सहयोगी बनाना चाहते थे और साथ ही...
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