महानंदा नदी को क्या कोसी नदी की तरह ही बिहार या सीमांचल का अभिशाप कहा जा सकता है? यह सवाल उठा रहे हैं कटिहार जिला के कदवा प्रखंड में जमा हुए हजारों लोग. देश में राजनीति के बदले माहौल में भी यदि यह संभव हो सका कि आस-पास के कई विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान और भूतपूर्व विधायक अपनी पार्टियों की पहचान से ऊपर उठकर एक मंच पर आ सकें और...
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स्थायी नौकरियों का मकड़जाल - मृणाल पांडे
बेरोजगारी फिलहाल देश की बड़ी चिंताओं में पहले पायदान पर है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने देश को आश्वस्त किया कि गत एक बरस में 18-25 की उम्र के 70 लाख युवाओं ने संगठित क्षेत्र में रोजगार पाया, इसका प्रमाण सरकारी बही में दर्ज कर्मचारी भविष्यनिधि (ईपीएफ) के 70 लाख नए खाते हैं। इस आशावादी घोषणा का आधार थी (विगत जनवरी में छपी आईआईएम के प्रोफेसर पुलक घोष व एक राष्ट्रीयकृत...
More »अवसाद की फैलती विषबेल-- मनीषा सिंह
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2015 में एक रिपोर्ट जारी करके दुनिया को चेताया था कि डिप्रेशन यानी अवसाद दुनिया की सबसे बड़ी मानसिक बीमारी बनने जा रहा है। अकसर ऐसी स्वास्थ्य-रिपोर्टों और चेतावनियों पर हमारी नजर नहीं जाती, या वक्त के साथ हम उन्हें भूल जाते हैं, पर इनसे जुड़े हादसे साबित करते हैं कि इन चेतावनियों को याद रखना कितना जरूरी है। जैसे, दिल्ली के नजदीक हरियाणा के...
More »पीडीएस को खत्म कर देगा डीबीटी-- ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा, आकाश रंजन
झारखंड में हाल ही में हुई भुखमरी से मौतों से जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की अहमियत उजागर होती है. राज्य में लाखों परिवार भूख की कगार पर रह रहे हैं और जन पीडीएस उनके लिए जीवन की डोर की तरह है. एक हल्के से झटके से यह डोर टूट सकती है और इनको भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. पिछले साल जब पीडीएस में आधार द्वारा अंगूठे का सत्यापन...
More »दलित दर्द की खतरनाक अनदेखी-- तरुण विजय
किसी भी समाज का सबसे बड़ा अपमान उसके दर्द, उसके इतिहास और उसके संघर्ष को नकारना होता है. कश्मीरी हिंदुओं के साथ यही हुआ. तमाम सेकुलर-जेहादियों ने पुस्तकें लिख डालीं कि कश्मीर घाटी से हिंदू अपने सदियों पुराने घर-बागीचे अपनी मर्जी से छोड़ आये, ताकि मुसलमान बदनाम किये जा सकें. आज महाराष्ट्र में दलितों के असंतोष को न तो हल्के ढंग से लेना चाहिए, न ही इसका सारा श्रेय...
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