फिल्म ‘पीपली लाइव' का एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत के माध्यम से एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या महंगाई की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। गीत के बोल हैं- ‘सइयां तो बहुत कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है।' यानी रात-दिन काम करने के बावजूद कमाई की अपेक्षा महंगाई कई गुना अधिक बढ़ती जा रही है। इसलिए घर में जो जरूरी पदार्थ आने चाहिए, वे...
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खाद्यान्न में अफरा-तफरी का बड़ा घोटाला उजागर
भोपाल। गरीबों के लिए रियायदी दर पर दिए जाने वाले खाद्यान्न् में अफरा-तफरी का बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। राजगढ़ और पचोर में परिवहनकर्ता साढ़े तीन करोड़ रुपए का खाद्यान्न् ले उड़ा। इसने गोदाम से 12 हजार 781 क्विंटल खाद्यान्न् उठाया पर राशन दुकान तक नहीं पहुंचाया। शुरुआत में परिवहनकर्ता घोटाले से इंकार करता रहा लेकिन नागरिक आपूर्ति निगम ने जब दस्तावेज सामने रख दिए तो उसके सारे तर्क हवा...
More »किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार
जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
More »खेती का खेल निराला मेरे भइया- राजेन्द्र तिवारी
देश के करीब 75 फीसदी परिवार कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं. देश की लगभग 70 प्रतिशत गरीब आबादी (विश्व बैंक के मुताबिक 77 करोड़ लोग) गांव में बसती है. लेकिन देश के जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगातार गिरता जा रहा है. 50 के दशक में कृषि की हिस्सेदारी हमारी जीडीपी में 50 फीसदी से ज्यादा थी, 90 के दशक में यह 20 से 30 फीसदी रह गया और 2013-14...
More »अरविंद पनगढिया जैसे लोगों को हटायें पीएम नरेंद्र मोदी, देसी समझ वाले लोगों की सुनें : गोविंदाचार्
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में महासचिव का पद संभाल चुके केएन गोविंदाचार्य पिछले कई सालों से पार्टी से छुट्टी पर चल रहे हैं. वह राजनीति की मुख्यधारा से भले अलग हो गये हों, पर उनकी छवि देसी चिंतक -विचारक की है. उनके पास भारत को देखने-समझने का अपना ‘स्वदेशी' नजरिया है. हाल ही में गोविंदाचार्य से बातचीत की प्रभात खबर डॉट कॉम के...
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