देश के कई हिस्से इन दिनों कृषि संकट से गुजर रहे हैं।काफी हद तक इसकी वजह खराब मानसून है। ज्यादातर इलाकों में किसान आज भी सालाना बारिश पर निर्भर हैं, लेकिन कम बारिश के चलते साल 2014 और 2015 उनके लिए अच्छे नहीं रहे, हालांकि 2016 में अच्छी बारिश हुई थी। इस संकट की एक वजह कमोडिटी साइकिल (उत्पादों का चक्र) भी है, जिसके कारण खाद्य उत्पादों की वैश्विक कीमतें चक्रानुक्रम...
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नौकरशाही पर पहरेदारी का प्रश्न - हृदयनारायण दीक्षित
भ्रष्टाचार से मुक्ति भारत की राष्ट्रीय अभिलाषा है। इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी के 'न खाऊंगा और न खाने दूंगा वाले बयान की अक्सर मिसाल दी जाती है। मोदी के तीन साल के कार्यकाल में केंद्र सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया, मगर इस बीच प्रशासन से जुड़े तमाम बड़े नाम भ्रष्टाचार की जद में फंसते नजर आए। सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा पर...
More »पलायन का उर्वर प्रदेश--- हरेराम मिश्र
कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं पलायन के परिदृश्य को समझने के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग यानी ‘पूर्वांचल' के जिलों में पलायन करने वाले कुछ श्रमिकों का ‘इंटरव्यू' कर रहा था। देवरिया जिले में, बातचीत के दौरान, एक श्रमिक ने कहा कि स्थानीय स्तर पर कोई काम-धंधा नहीं मिलता है इसलिए हमें देश के दूसरे हिस्सों में ‘नौकरी' खोजने के लिए जाना पड़ता है। उस श्रमिक...
More »शिक्षा और परीक्षा--- मनोज निगम
परीक्षा के दिनों में इसका खौफ जिस तरह शुरू हो जाता है, शिक्षण तंत्र से बाहर निकल कर ही समझ में आता है कि हमने कहां गड़बड़ की, शिक्षक कैसे थे, उनका हमारे ऊपर क्या प्रभाव पड़ता था, व्यवस्थाएं कैसी हैं। यह सब समझ में आता है जब पढ़ाई के बाद जीवन की परीक्षा होती है। पहली बार स्कूल गया तो वहां की शिक्षिका की याद अब तक बरकरार है।...
More »रोजी-रोजगार का हाहाकार-- अनिल रघुराज
बिगाड़ना बड़ा आसान है, बनाना बहुत मुश्किल. इसी तरह रोजगार मिटाना बहुत आसान है, जबकि रोजगार बनाना बहुत मुश्किल. अगर ऐसा न होता, तो हर साल दो करोड़ नये रोजगार पैदा करने का वादा करनेवाली मोदी सरकार अपने आधे कार्यकाल तक कम-से-कम पांच करोड़ रोजगार तो पैदा ही कर चुकी होती. लेकिन, सरकार का श्रम ब्यूरो बताता है कि देश में रोजगार देनेवाले आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में अप्रैल से...
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