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रूस-यूक्रेन संघर्ष: तेल के बढ़ते दाम और रुपये की गिरावट के बीच सरकार के पास क्या उपाय हैं?

-द वायर, नरेंद्र मोदी सरकार की एक आलोचना यह कहकर की जाती है कि इसके पास राज्य चुनावों के बीच शासन करने का बिल्कुल समय नहीं होता है. पिछले कुछ दिनों में जब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई और रुपया कमजोर होकर 77 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया, उस समय सरकार के आधा दर्जन मंत्री दिल्ली की जगह वाराणसी...

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उपभोक्ता अधिकार दिवस: डिजिटल लेनदेन में पारदर्शिता की राह अभी लंबी है

-जनपथ, 15 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं उनकी आवश्यकताओं के विषय में वैश्विक स्तर पर जागरूकता उत्पन्न करने का एक अवसर है। इस वर्ष कंज़्यूमर इंटरनेशनल के 100 देशों में फैले हुए 200 कंज़्यूमर समूहों ने “फेयर डिजिटल फाइनेंस” को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस की थीम के रूप में चुना है। कंज़्यूमर इंटरनेशनल यह महसूस करता है कि तेजी से बढ़ती डिजिटल बैंकिंग...

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किसान पर पड़ती जलवायु की मार: भारत में 45 फीसदी तक घट जाएगा डेयरी और मीट उत्पादन

-डाउन टू अर्थ, बदलती जलवायु जहां एक ओर कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गई है। वहीं दूसरी तरफ यह पशुपालकों और उनके पशुधन पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकती है। इस बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके चलते सदी के अंत तक भारत में डेयरी उत्पादन 45 फीसदी तक घट जाएगा। वहीं अमेरिका के डेयरी और...

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महामारी के समय में बजट और राजनीति

-आइडियाज फॉर इंडिया, हाल ही में वर्ष 2022-23 के लिए घोषित बजट को राजनीतिक अर्थव्यवस्था के चश्मे से देखते हुए, यामिनी अय्यर तर्क देती हैं कि महामारी के दौरान घोषित किये गए दोनों बजटों में कल्याण से ज्यादा पूंजीगत व्यय पर दिया गया जोर "बाजार के अनुकूल सुधारों" की ओर राजनीतिक आख्यान में बदलाव का सिलसिला मात्र है जो 2019 में मोदी सरकार के फिर से चुने जाने के साथ शुरू...

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गुमराह करने वाले हैं देश के श्रम में महिलाओं की भागीदारी के सरकारी आंकड़े

-कारवां, दुनिया भर के देशों में हुए हाल के अध्ययनों में कोविड-19 महामारी के महिलाओं के जीवन पर पड़े विषम प्रभावों का पता चलता है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं, दोनों के ही लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं और रोजगार की क्वालिटी भी गिरी है, लेकिन श्रम बाजार में महिलाओं की स्थिति मर्दों के मुकाबले पहले से कहीं अधिक असुरक्षित हुई है. विश्व आर्थिक मंच की “दि ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट...

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