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अंतिम समाधान तो पुलिस ही है-- विभूति नारायण राय

दुनिया भर का अनुभव बताता है कि नागरिक असंतोष यदि समय से सुलझाया न जा सके और उसे अनुकूल खाद-पानी मिले, तो अंततोगत्वा वह एक सशस्त्र प्रतिरोध में तब्दील हो जाता है। खास तौर से जब धर्म जैसा कोई मजबूत दर्शन इसके पीछे हो और बिना किसी गंभीर प्रयास के सरकारें सिर्फ लीपापोती कर रही हों, तब स्थिति अधिक बिगड़ सकती है। शुरुआत में तो इस उभार का सामना नागरिक...

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गोरखालैंड पर अब तो मिटे तनातनी - कृपाशंकर चौबे

र्जिलिंग पिछले छह वर्षों से शांत था, किंतु वहां राज्य मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित करने और बांग्ला भाषा संबंधी पश्चिम बंगाल सरकार की अधिसूचना जारी होते ही यह पहाड़ी क्षेत्र उबलने लगा। तकरीबन पखवाड़े भर से जारी आंदोलन के रुकने की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिख रही है, क्योंकि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने पर्वतीय क्षेत्र से पुलिस बल व सेना हटाने और अलग गोरखालैंड राज्य बनाए जाने तक जंगी आंदोलन...

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कब उदार रहे हैं हम!-- आकार पटेल

नरेंद्र मोदी सरकार पर यह गलत आरोप लगाया जाता है कि वे भारत को एक तरह के उग्र या अनुदार राष्ट्र में बदल रहे हैं. अनुदार का मतलब असहिष्णु तथा अभिव्यक्ति और कर्म की आजादी पर को सीमित करने का समर्थन करना होता है. मैं कहता हूं कि इस सरकार पर अनुदार होने के गलत आरोप लगते हैं, क्योंकि तथ्य बताते हैं कि भारत की सरकार कभी भी बहुत उदार...

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मीडिया समझे अपना दायित्व-- विश्वनाथ सचदेव

कुछ दिनों पहले भारत-पाक के बीच एक क्रिकेट मैच हुआ था. उस दिन जिसने भी टीवी देखा होगा, तो वह सबेरे से ही एक युद्धोन्माद का गवाह बना होगा. लगभग हर समाचार चैनल पर सबेरे से ही रथी-महारथी जुट गये थे. क्रिकेट की बात तो हो रही थी, पर उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण था वह नकली जोश, जो स्टूडियो में, और स्टूडियो से बाहर अलग-अलग लोकेशनों पर दिखाया जा रहा...

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सत्ता का संदेश- जय किसान जवान-- मुकेश भारद्वाज

आजादी के बाद भूमि सुधार की बात तो हुई लेकिन यह किसी पार्टी के एजंडे में नहीं रहा। विषमताओं और गैरबराबरी वाले भारत में इस बुनियादी मुद्दे को भुला महाजनों और मानसून पर निर्भर किसानों को विश्व बाजार के मंच पर अकेला छोड़ दिया गया। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सभी सरकारें चुप हैं। जब लोगों के जीने-मरने का सवाल पैदा हो रहा हो तो उनके सामने नोटबंदी और डिजिटल...

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