SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 5902

लोहरदगा के कुड़ू प्रखंड में मनरेगा के 18 हजार 88 जॉबकार्ड, एक साल में सिर्फ 202 लोगों को मिला 100 दिन का रोजगार

जनचौक ,9 मई  मनरेगा योजना पहले ही प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान स्थापित करती रही है, जिसके कारण मनरेगा मजदूर परेशान रहे हैं। अब केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के बजट में की गयी भारी कटौती और उसमें किये गए तकनीकी बदलाव के चलते योजना से मजदूरों का मोहभंग हो रहा है। दरअसल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली एनएमएमएस के द्वारा मज़दूरों की उपस्थिति दर्ज करने के साथ-साथ आधार आधारित भुगतान प्रणाली...

More »

नैनो यूरिया ट्रायल से खेत तक, भाग-एक: किसानों का क्यों हो रहा मोहभंग?

डाउन टू अर्थ, 9 मई “ वर्ष 2022, नवंबर में कुल 08 हेक्टेयर खेतों में गेहूं की फसल बुआई की थी। बुआई के करीब 20 दिन बाद प्रयोग के तौर पर 4 हेक्टेयर खेत में 500 एमएल वाली 10 नैनो तरल यूरिया की बोतल का छिड़काव  किया। खेतों में इस स्प्रे के लिए कुल 1000 रुपए की अतिरिक्त मजदूरी भी दी। जबकि 4 हेक्टेयर खेत में पहले की तरह पारंपरिक यूरिया...

More »

एनएसएसओ का सर्वे: केवल 49.8 % परिवार ही खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का प्रयोग कर पा रहे हैं

ग्रामीण भारत के केवल 49.8 प्रतिशत परिवार ही खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का प्रयोग कर पा रहे हैं। 46.7 प्रतिशत ग्रामीण परिवार खाना पकाने के लिए लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों के 6.5% परिवारों में खाना पकाने के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। अगर बात करें पीने के पानी की तो केवल 39.1 प्रतिशत परिवारों के पास ही आवास के भीतर पीने के पानी की...

More »

खाद्य तेलों के भारी आयात से किसानों का बुरा हाल, सरसों एमएसपी से 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बिक रहा

रूरल वॉयस, 07 मई एक तरफ सरकार खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है और इसके लिए विशेष सरसों अभियान चला रही है ताकि सरसों का बुवाई रकबा और उत्पादन बढ़े, दूसरी तरफ खाद्य तेलों के बेधड़क आयात की छूट दे रखी है। इससे सरसों किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। देशभर की तमाम मंडियों में सरसों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये...

More »

दुनिया भर की जलवायु पर असर डाल रहा है तिब्बती पठार की मिट्टी का तापमान

डाउन टू अर्थ, 05 मई मौसम का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। प्राकृतिक प्रणालियां इतनी जटिल हैं कि, सबसे उन्नत तकनीक से भी मौसम विज्ञानी 10 दिनों से अधिक का सटीक अनुमान नहीं लगा सकते हैं। इसलिए भविष्य में महीनों और ऋतुओं के बारे में पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है। फिर भी यह जलवायु विज्ञान के बढ़ते क्षेत्र पर गौर करते है जो 1980 के दशक में गंभीरता से शुरू हुआ था। इसकी शुरुआत...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close