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सिर्फ प्रशासनिक सोच से नहीं रुकेंगे अपराध-- भारत डोगरा

पिछले पूरे साल के दौरान दिल्ली में लगभग डेढ़ लाख अपराध दर्ज किए गए। वास्तविक अपराध अवश्य इससे भी कहीं अधिक रहे होंगे, क्योंकि अनेक अपराध दर्ज नहीं होते। दर्ज अपराध के आंकड़ों को ही लें, तो यह बहुत गंभीर स्थिति है। मान लीजिए कि एक अपराध से यदि छह व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रभावित होते हैं, तो मात्र पांच वर्ष में तकरीबन 45 लाख इस तरह प्रभावित...

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झारखंड का विकास मंत्र- जॉब जकारिया(यूनिसेफ, झारखंड)

झारखंड दुनिया भर के सर्वाधिक खनिज संपन्न इलाकों में से एक है. इसके अलावा जल, जंगल और जमीन के रूप में भी प्राकृतिक संसाधन है. मगर ये संसाधन मात्र ही राज्य का सामाजिक, आर्थिक और मानवीय विकास नहीं कर सकते. मानव विकास का अध्ययन करनेवाली राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़े बताते हैं विकास के लिए झारखंड को अभी भी बहुत काम करना है और त्वरित गति से करना है....

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संविधान की प्रस्तावना से हटाए ‘सेकुलर, सोशलिस्ट’ शब्द!

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर प्रकाशित एक सरकारी विज्ञापन को लेकर विवाद छिड़ गया है। विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना दी गई है, लेकिन उसमें देश के नाम के साथ ‘सोशलिस्ट' यानी समाजवादी और ‘सेकुलर' यानी पंथनिरपेक्ष ये दो शब्द गायब हैं। हालांकि, सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री राजवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि विज्ञापन में प्रकाशित चित्र संविधान की प्रस्‍तावना के मूल संस्‍करण से लिया गया था। समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष...

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कभी गांव में निर्वस्त्र घुमाई गई महिला पंचायत चुनाव के मैदान में

आशुतोष शर्मा, महासमुंद। बिसाहिन बाई को टोनही बताया गया, उन पर और उनके गांव की अन्य दो महिलाओं पर बेइंतहा जुल्म ढाए गए लेकिन बिसाहिन बाई ने हिम्मत नहीं हारी और आज वह प्रदेश भर में टोनही प्रताड़ना का दंश झेल रही महिलाओं के लिए प्रेरणा की संवाहक बन गई हैं। महासमुंद जिले की सरहद पर बसे गरियाबंद जिले के गांव लचकेरा में 22 अक्टूबर 2001 को एक बेहद शर्मनाक...

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समाज और राजनीति के रिश्तों का संधान- अभय कुमार दुबे

राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया' में उन्होंने दावा किया था कि भारतीय समाज के संदर्भ...

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